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________________ एकात्मवाद 109 600 ई.पू. में भगवान् महावीर एवं गौतम बुद्ध के अलावा पांच धर्मनायकों (अजित केशकम्बल, पकुधकच्चायन, पूरणकाश्यप, संजयवेलट्ठिपुत्त एवं मक्खलिगोशाल) का उल्लेख मिलता है। ये सभी मगध राजा अजातशत्रु के समकालीन किसी धार्मिक संघ के मुखिया, गणाधिपति, साधु-सम्मत यशस्वी तीर्थंकर थे, जो बहुजनों द्वारा सम्मानित (समस्त देश में इनका सम्मान किया जाता था), चिर-प्रवर्जित अर्थात् अनुभव प्राप्त थे। जिनका अनेक शिष्य अनुसरण करते थे (I. दीघनिकाय, II.151-155, खण्ड-1 पृ. 52-53, II. दीघनिकाय, महापरिनिब्बाणसुत्त, खण्ड-2, पृ. 113, [318])। इनमें से अजितकेशकम्बल के अनित्य आत्मवाद अथवा तज्जीव-तच्छरीरवाद का तथा पकुधकच्चायन के चारभूत सिद्धान्त का द्वितीय अध्याय पंचभूतवाद में विवेचन किया गया। चौथे अध्याय क्षणिकवाद के अन्तर्गत गौतम बुद्ध के क्षणिक आत्मवाद का, पांचवें अध्याय सांख्यमत में पूरणकाश्यप के अकारकवाद तथा पकुधकच्चायन के आत्म षष्ठवाद का तथा सूक्ष्म आत्मवाद का, छठे अध्याय नियतिवाद में मंखलिगोशाल के अक्रिय आत्मवाद अथवा नियतिवाद का तथा सातवें अध्याय महावीरकालीन सिद्धान्तों का संक्षिप्त परिचय में चार समवसरण अवधारणा के अन्तर्गत संजय के अज्ञानवाद का विवेचन किया जाएगा, क्योंकि ये आत्मवाद उन अध्यायों से संबंधित हैं। अतः स्वतंत्र रूप से उक्त अध्यायों में विवेचना की जाएगी तथा प्रस्तुत अध्याय में एकात्मवाद का विवेचन प्रस्तुत है। 5. जैन आगमों में एकात्मवाद का प्रतिपादन एकात्मवाद' सिद्धान्त सर्वप्रथम उपनिषदों में प्राप्त होता है। उपनिषदों को परवर्ती काल में वेदान्त नाम से पुकारा गया है, क्योंकि वे वैदिक साहित्य के उपसंहार के रूप में लिखे गये थे। यद्यपि वर्तमान समय में वेदान्त से प्रायः वेदान्त दर्शन समझा जाता है, जिसमें ब्रह्मसूत्र अथवा उत्तरमीमांसा के साथ वेदान्त के विभिन्न सम्प्रदायों का समावेश होता है, परन्तु उपनिषदों को 1. एकात्मवाद को उपनिषद् का उपजीवी दर्शन बताया गया है। यद्यपि ऋग्वेद (1500 ई.पू.) में आत्मरूप में अप्रतिष्ठित 'सत् एक था' यह सिद्धान्त प्राप्त होता है और लोग उसे अनेक तरीकों से कहते थे (ऋग्वेद, 1.164.46 [319])।
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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