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________________ 88 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद ___ गीता में भी आसुरी सिद्धान्त का उल्लेख मिलता है कि असुर नहीं जानते कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं। वे पवित्र और सत्य आचरण भी नहीं करते। वे जगत् को मिथ्या मानते हैं और कहते हैं कि इसका कोई आधार नहीं और इसका नियम किसी ईश्वर द्वारा प्रदत्त नहीं होता, इसकी उत्पत्ति का कारण काम के अतिरिक्त और कुछ नहीं। इस प्रकार वे इन्द्रिय तुष्टि में ही लगे रहते हैं और सोचते हैं कि मैं सभी वस्तुओं का स्वामी हूँ। मैं भोक्ता हूँ। मैं सिद्ध, शक्तिमान तथा सुखी हूँ (गीता, 16.7-8, 10-11, 13-15 [242])। इस प्रकार ऐसा मानने वाले मूर्ख लोग संसार की बहुत हानि करते हैं। __वाल्मीकिकृत रामायण के अयोध्याकांड में पंचभूत सिद्धान्त का वर्णन इस प्रकार है-वहाँ जाबालि नामक ब्राह्मण राम को अयोध्या लौटने की सलाह देते हुए आदेश की भाषा में कहते हैं कि-“हे मनुष्यों में श्रेष्ठ राम, पिता के राज्य को छोड़कर बहुत कांटों भरे कठिन रास्ते को स्वीकार करना तुम्हारे लिए उचित नहीं है। हे राम, कीमती राज्य-भोगों का भोग करते हुए तुम अयोध्या में उसी तरह विहार करो, जैसे इन्द्र स्वर्ग में करता है। ....राजा दशरथ वहां गये, जहाँ सभी को जाना है, मरणशील मनुष्यों की यही प्रवृत्ति है, उसके लिए तुम अपने को क्यों व्यर्थ मार रहे हो। जो लोग जीवन भर धर्म की चिंता करते रहे, उनके लिए मुझे शोक है। उन्होंने यहां दुःख सहा और जीवन में गड़ कर नष्ट हो गये। अष्टका आदि पिता का श्राद्ध तथा देवताओं के लिए जो लोग यज्ञ करते हैं, उसमें केवल अन्न का नाश होता है-भला मरा व्यक्ति कुछ खाता है। यदि यहाँ किसी के भोजन करने से दूसरे के शरीर को पहुंचे, तभी यह माना जा सकता है कि मरे हुए के लिए श्राद्ध करने से उसे मिलता है। ....हे बुद्धिमान् राम! तुम्हें यही मानकर चलना चाहिए कि परलोक नहीं है, और दान यज्ञ अनावश्यक है" (रामायण, अयोध्याकांड, 108.7, 9, 12-14, 16-18 [243])। ___महाभारत में भी पंचभूत सिद्धान्त का उल्लेख हुआ है-शांतिपर्व में सृष्टि उत्पत्ति सिद्धान्त के सन्दर्भ में भारद्वाज कहते हैं कि प्रजापति ने पहले पांच धातुओं का निर्माण किया, जो महाभूत के नाम से कहे जाते हैं और इन्हीं के जरिए यह सब लोक घिरा हुआ है तथा पांच सम्पूर्ण भूतों की उत्पत्ति और प्रलय के समान है (महाभारत, शांतिपर्व, 177.1 [244])। वहां पर पंच धातुओं का स्वरूप-चेष्टात्मक वायु, श्रोत्रात्मक खोखलापन आकाश, उष्णात्मक अग्नि,
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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