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________________ पञ्चभूतवाद 85 5. पंचभूतवाद एवं तज्जीव-तच्छरीरवाद नास्तिकता की कसौटी पर सूत्रकृतांग में नास्तिकों (पंचभूतवादियों) के बारे में कहा गया है कि वे संसार को अपना सिद्धान्त स्वीकार करने के लिए कहते हैं (सूत्रकृतांग, II.1.21 [233]), अर्थात् प्रवज्या ग्रहण करने के लिए कहते हैं किन्तु शीलांक के अनुसार लोकायत दर्शन में दीक्षा का विधान नहीं है इसलिए साधु जैसा कोई हो नहीं सकता, अन्य सम्प्रदाय जैसे कि शाक्य, बौद्ध आदि अन्य की प्रव्रज्या विधि से प्रव्रजित होकर वे कभी-कभी साधु अवस्था में लोकायत को पढ़ते हैं और लोकायत मत में परिवर्तित हो जाते हैं और दूसरों को उपदेश देने लगते हैं (सूत्रकृतांगवृत्ति, पृ. 11 [234])। __ अजित के मतानुसार चार भूतों की काय संज्ञा है (दीघनिकाय, पृ. 49 [235]) जैसे पृथ्वीकाय आदि, किन्तु आकाश की काय संज्ञा नहीं है। वह किये गये कर्मों का विपाक नहीं मानता था और न ही परलोक को मानता था (दीघनिकाय, पृ. 49 [236])। इस दृष्टि से वह अक्रियावादी है। उसने अपने मत के विपरीत मतवाद को अत्थिकवाद कहा है। उससे यह फलित होता है कि वह नास्तिकवादी है। निश्चित ही इस तरह के सिद्धान्त अन्य नास्तिक मतों की ही तरह हैं। उक्त (पंचभूतवाद तज्जीव-तच्छरीरवाद एवं चार्वाक) मतों के आलोक में स्पष्ट हो जाता है कि भारत में भूत-चैतन्यवाद या भौतिकवादी मान्यताओं का अस्तित्व अति प्राचीन काल से था जो पूर्व में पंचभूतवाद (पूर्व भौतिकवादी मान्यताएँ)' नाम से प्रसिद्ध था, जो आगम प्रमाणित हैं। यह सिद्धान्त तो समय के साथ समाप्त हो गया होगा अथवा दार्शनिक सिद्धान्तों के रूप में अपने सूत्र व टीकाओं के साथ विकसित और व्यवस्थित ही नहीं हो पाया हो। इस सन्दर्भ में यह भी कहा जा सकता है कि जो भूतचतुष्ट्यवाद है, जो भूतों से आया है, जिसका उल्लेख श्वेताश्वतर उपनिषद् में भी आया, जिसे अजितकेशकम्बल के द्वारा प्रचारित किया गया, वही बाद में चार्वाक सिद्धान्त के अन्तर्गत आ गया हो अथवा उसी ने चार्वाक सिद्धान्त का रूप हस्तगत कर लिया हो। 1. For more detail, see Ramkrishna Bhattacarya, Jain Sources for the study of Pre-cārvāka Materialist Ideas in the India (Article), Jain Journal, Calcutta, Vol.XXXVIII, No.3Jan., 2004, pp.145-160.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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