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________________ 82 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद सम्मानित सम्भ्रान्त आचार्य माना जाता, फिर तो उसे चोरों आदि का नेता होना चाहिए था।' अजित की धारणा स्वार्थ सुखवाद की नैतिक धारणा थी तथा उनका दर्शन या आत्मवाद भौतिकवादी है। लेकिन पुनः मन में यह शंका उपस्थित होती है कि यदि अजित केशकम्बल नैतिक धारणा में सुखवादी और उनका दर्शन भौतिकवादी था तो फिर वह स्वयं साधना मार्ग का अनुसरण कर देह दण्डन पथ का अनुगामी क्यों बनता, क्यों उसने श्रमणों व उपासकों का संघ बनाया और न उसके संघ में गृहत्यागी का स्थान होता है। अजित दार्शनिक दृष्टि से अनित्यवादी था। जगत् की परिवर्तनशीलता पर ही उसका जोर था। वह लोक, परलोक, देवता, आत्मा आदि किसी तत्त्व को नित्य नहीं मानता था। उसका यह कहना “यह लोक नहीं, परलोक नहीं, माता-पिता, देवता नहीं...." केवल इसी अर्थ का द्योतक है कि इन सभी की शाश्वत सत्ता नहीं है, सभी अनित्य है। वह आत्मा को भी अनित्य मानता था और इसी आधार पर कहा गया है कि उसकी नैतिक धारणा में सुकृत और दुष्कृत धर्मों का विपाक नहीं है। यह भी संभव है कि बुद्ध के अपने अनात्मवादी दर्शन की पूर्व भूमिका अजित का अनित्य आत्मवाद था, जो उन्होंने अजित से ग्रहण किया हो सकता है, क्योंकि अजित केशकम्बल की यह दार्शनिक परम्परा बुद्ध के अनात्मवाद के प्रारम्भ होने पर समाप्त प्रायः हो गई। और यह तो स्पष्ट ही है कि अजितकेशकम्बल भगवान् बुद्ध से आयु में बड़े थे, क्योंकि कोसलराज प्रसेनजित ने एक बार बुद्ध से कहा था-“हे गौतम! वह जो श्रमण ब्राह्मण संघ के अधिपति, गणाधिपति गण के आचार्य, प्रसिद्ध यशस्वी तीर्थंकर, बहुत जनों द्वारा सुसम्मत है, जैसे पूरणकश्यप, मक्खलिगोशाल, निगंठनातपुत्त, संजयवेलट्टिपुत्त पकुधकच्चायन, अजितकेशकम्बल-वे भी यह पूछने पर कि (आपने) अनुपम सच्ची संबोधी (परम ज्ञान) को जान लिया, यह दावा नहीं करते। फिर जन्म से अल्पवयस्क और प्रव्रज्या में नये आए गौतम के लिए तो कहना ही क्या है?". 1. दर्शन-दिग्दर्शन, किताब महल, इलाहाबाद, संशोधित संस्करण, 1998, पृ. 377. 2. सागरमल जैन, महावीरकालीन विभिन्न आत्मवाद एवं जैन आत्मवाद का वैशिष्ट्य (शोध लेख), जैन विद्या के विविध आयाम, खण्ड-6 (सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ), पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, 1998, पृ. 113-114.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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