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________________ 70 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद सहज ही मादकता उत्पन्न होती है। उसी प्रकार चैतन्य पांचभूतों से पृथक् कोई तत्व नहीं है, क्योंकि वह घट आदि के जो कार्य हैं, पंचमहाभूत उसके कारण हैं। इस प्रकार पंचभूतों के अतिरिक्त भिन्न आत्मा का अस्तित्व न होने के कारण चैतन्य या चेतना शक्ति की अभिव्यक्ति का आधार पांचभूतों पर ही टिका है। जैसे जल से बुलबुलों की अभिव्यक्ति होती है वैसे ही आत्मा की अभिव्यक्ति पंचभूतों से होती है (I.सूत्रकृतांगवृत्ति, पृ. 12, II. षड्दर्शनसमुच्चय, 84 [207])। इस प्रकार चैतन्य शक्ति पंचभूतों से भिन्न नहीं है। भूतों का विनाश होने पर आत्मा का भी विनाश हो जाता है। इसमें कितने भूतों का विनाश होने पर प्राणी अथवा जीव की मृत्यु होती है। ऐसा भी आगम में कोई उल्लेख नहीं मिलता। किन्तु चूर्णिकार तथा वृत्तिकार इसके बारे में स्पष्टीकरण देते हैं। जिनदासगणि के अनुसार पांच भूतों से निर्मित इस शरीर में किसी एक भूत की कमी होने पर पृथ्वीभूत पृथ्वी में, अपभूत अप में, वायुभूत वायु में, तैजसभूत तैजस में और आकाशभूत आकाश में मिल जाता है (सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 24 [208])। शीलांक इस बात को थोड़े अलग तरीके से कहते हैं कि देहरूप में परिणत पांच महाभूतों में चेतनाशक्ति अभिव्यक्त होती है। वैसा होने के बाद जब उन पंचभूतों में से किसी एक भूत का नाश हो जाता है। वायु या अग्नि अथवा दोनों जब विछिन्न हो जाते हैं तब उदाहरणार्थ देवदत्त नामक व्यक्ति का नाश हो गया, वह मर गया, ऐसा व्यवहार होता है (सूत्रकृतांगवृत्ति, पृ. 11 [209])। 3. तज्जीव-तच्छरीरवाद महावीर के समकालीन आत्मवादों में एक प्रमुख आत्मवाद अजितकेशकम्बल का अनित्य आत्मवाद था। अजितकेशकम्बल 600 ई.पू. के भारतीय भौतिकवाद का ऐतिहासिक संस्थापक माना जाता है। वह केशकम्बलिन के नाम से जाना जाता था, क्योंकि वह मनुष्य के केश का बना कम्बल पहनता था, जो गर्मी में गर्म रहते थे और सर्दी में ठण्डे रहते थे और जो इस प्रकार दुःख का स्रोत था (अंगुत्तरनिकाय, योधाजीववग्ग, 138, पृ. 322 [210])। सूत्रकृतांग में कुछ मतवादियों के अनुसार प्रत्येक शरीर में पृथक् पृथक् अखंड आत्मा है, इसलिए कुछ अज्ञानी हैं और कुछ पंडित। जो शरीर है, वे ही आत्माएँ हैं और वे आत्माएँ
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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