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________________ पञ्चभूतवाद 63 जिनदासगणी (7वीं ई. शताब्दी) के अनुसार शरीर में जो कठोर भाग है वह पृथ्वीभूत, द्रवभाग है वह अपभूत है, उष्ण स्वभाव या शरीराग्नि वह तैजस्भूत, चल स्वभाव या उच्छ्वास-निश्वास वह वायुभूत है और जो शुषिर स्थान वह आकाशभूत है (सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 23-24 [189])। सूत्रकृतांग में आगत पंचमहाभौतिक नाम चूर्णिकार जिनदासगणी द्वारा भी मान्य है (सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 23 [190]) तथा वृत्तिकार शीलांक ने इस मत को बार्हस्पत्य लोकायतिक भूतवाद नाम दिया है (सूत्रकृतांगवृत्ति, पृ. 10 [191))। किन्तु सूत्रकृतांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के पुण्डरीक अध्ययन में पंचभूत की व्याख्या करते समय शीलांक ने लोकायतिक मत के साथ सांख्यमत को भी पंचभूत के अन्तर्गत माना है, जिसे अभ्युपगम के द्वारा सिद्धान्त ग्रहण के रूप में पांच भूत मान्य हैं, वह पंचभूत है (सूत्रकृतांगवृत्ति, पृ. 3 [192])। सांख्यमत वाले सर्वत्र आत्म अकर्तृत्व को मानते हैं और प्रकृति का सर्वत्र कर्तृत्व मानता है, और लोकायत भी नास्तिकभूतों के अतिरिक्त कुछ नहीं है, ऐसा मानता है। इस आधार पर शीलांक पंचभूत के अन्तर्गत लोकायत एवं सांख्य दोनों को स्वीकार करता है। साथ ही लोकायतिकों के लिए चार्वाक शब्द का भी प्रयोग करता है (सूत्रकृतांगवृत्ति, पृ. 188 [193])। यद्यपि शीलांक ने पंचमहाभौतिकवाद को लोकयतिक भूतवाद तथा सांख्यमत में गिना है। तथापि वे इस सन्दर्भ में एक प्रश्न उठाते हैं कि सांख्य, वैशेषिक आदि भी पंचमहाभूतों का सद्भाव मानते हैं फिर भी पंचमहाभूतों के कथन को लोकायतिक मत की अपेक्षा से ही क्यों मानना चाहिए? इस प्रश्न का वे स्वयं समाधान देते हैं कि सांख्य प्रधान से महान्, महान् से अहंकार और अहंकार से षोडश पदार्थों की उत्पत्ति को मानता है। वैशेषिक काल, दिग्, आत्मा आदि तथा अन्य वस्तु समूह को भी मानता है। परन्तु लोकायतिक (चार्वाक) पांचभूतों के अतिरिक्त किसी आत्मा आदि तत्त्व का अस्तित्व नहीं मानते। अतः प्रस्तुत वाद को लोकायतिक मत कहा गया है (सूत्रकृतांगवृत्ति, पृ. 10 [194])। यहां विशेष विचारणीय है कि शीलांक पंचभूतवाद को चार्वाक और लोकायत के साथ सांख्य से भी मेल बिठाते हैं। जहाँ चार्वाक मुक्ति या निर्वाण को अस्वीकार करते हैं, वहीं सांख्य की मान्यता ऐसी नहीं है। वे दुःख मुक्ति
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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