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________________ इनकी एक ही रचना प्राप्त है 'हरिवंशपुराण'। इसकी कथावस्तु जिनसेन को अपने गुरु कीर्तिसेन से प्राप्त हुई थी। इस पुराण - ग्रन्थ पर पूर्वाचार्यों का पूर्ण प्रभाव है। इस पुराण में 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ का चरित्र निबद्ध है, पर प्रसंगोपात्त अन्य कथानक भी लिखे गये हैं। 'हरिवंशपुराण' ज्ञानकोष है। इसमें कर्म - सिद्धान्त, आचारशास्त्र, तत्त्वज्ञान एवं आत्मानुभूति - सम्बन्धी चर्चायें निबद्ध हैं। यह पुराणग्रन्थ होने पर भी उच्चकोटि का महाकाव्य है। साहित्यिक सुषमा के साथ सृष्टिविद्या, धर्मशास्त्र, तत्त्वज्ञान, षट्द्रव्य, चास्तिकाय आदि का भी विस्तारपूर्वक वर्णन आया है। आचार्य जिनसेन ने अपने समय की राजनीतिक परिस्थिति का भी चित्रण किया है। आचार्य गुणभद्र प्रतिभामूर्ति गुणभद्राचार्य संस्कृत भाषा के श्रेष्ठ कवि हैं। गुणभद्र का समस्त जीवन साहित्य - साधना में ही व्यतीत हुआ। ये उत्कृष्ट ज्ञानी और महान् तपस्वी थे। भद्राचार्य का निवास स्थान दक्षिण आरकट जिले का 'तिरुमरुडकुण्डम्' नगर माना जाता है। इनके गृहस्थ जीवन के सम्बन्ध में तथ्य अज्ञात हैं। इनके ग्रन्थों की प्रशस्तियों से स्पष्ट है कि ये सेनसंघ के आचार्य थे। इनके गुरु का नाम आचार्य जिनसेन द्वितीय और दादा गुरु का नाम वीरसेन है। आचार्य जिनसेन प्रथम या द्वितीय के समान गुणभद्र की भी साधना - भूमि कर्नाटक और महाराष्ट्र की भूमि रही है। गुणभद्राचार्य जिनसेन द्वितीय के शिष्य थे तथा उनके अपूर्ण महापुराण (आदिपुराण) को इन्होंने पूर्ण किया था । गुणभद्र का समय शक संवत् 820, ईस्वी सन् 898 अर्थात् ईस्वी सन् की नवम शती का अन्तिम चरण सिद्ध होता है। अपनी रचना 'आदिपुराण' में गुणभद्राचार्य ने अपने गुरु जिनसेन द्वितीय द्वारा अधूरे छोड़े 'आदिपुराण' के 43वें पर्व के चौथे पद्य से समाप्तिपर्यन्त कुल 1620 पद्य लिखे हैं। 'उत्तरपुराण' एक और रचना है, जो 'महापुराण' का उत्तर भाग है। अन्य रचनायें 'आत्मानुशासन' एवं 'जिनदत्तचरित - काव्य' हैं। आचार्य वादीभसिंह -गद्य श्रेण्य -‍ - गद्य-संस्कृत-साहित्य में जो स्थान महाकवि बाण का है, जैन - संस्कृत - ‍ - साहित्य में वही स्थान वादीभसिंह का है । कवि वादीभसिंह ने 'गद्यचिन्तामणि' जैसा गद्यकाव्य का उत्कृष्ट ग्रन्थ लिखकर जैन-संस्कृत-काव्य को अमरत्व प्रदान किया है। डॉ. कीथ ने लिखा है— " कादम्बरी से प्रतिस्पर्धा करने का दूसरा प्रयत्न ओडयदेव (वादीभसिंह) के 'गद्यचिन्तामणि' में परिलक्षित होता है, उनका उपनाम वादीभसिंह था । वे एक दिगम्बर-जैन-मुनि थे और पुष्पसेन के शिष्य थे। " तंजौर में 'गद्यचिन्तामणि' की पाण्डुलिपियों का प्राप्त होना भी इस बात की ☐☐ 60 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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