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________________ इस उल्लेख से स्पष्ट है कि वज्रसूरि के वचन गणधरों के समान मान्य थे। दर्शनसार के उल्लेखानुसार इनका समय छठी शती ईस्वी प्रतीत होता है। आचार्य यशोभद्र प्रखर तार्किक के रूप में जिनसेन ने इनका स्मरण किया है। 'आदिपुराण' में बताया है विदुष्विणीषु संसत्सु यस्य नामापि कीर्तितम। निखर्वयति तर्दगर्वं यशोभद्रः स पातु नः॥1 अर्थात् विद्वानों की सभा में जिनका नाम कह देने मात्र से सभी का गर्व दूर हो जाता है, वे यशोभद्र स्वामी हमारी रक्षा करें। जैनेन्द्र-व्याकरण में "क्व वृषिमृजां यशोभद्रस्य" (2/1/99) सूत्र आया है; अतः जिनसेन के द्वारा उल्लिखित यशोभद्र और देवनन्दि के जैनेन्द्र-व्याकरण में निर्दिष्ट यशोभद्र यदि एक ही हैं, तो इनका समय विक्रम संवत् छठी शती के पूर्व होना चाहिये। आचार्य कनकनन्दि सिद्धान्त-ग्रन्थों के रचयिता के रूप में कनकनन्दि का नाम भी नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती के समान समादरणीय है। इन्हें भी 'सिद्धान्त-चक्रवर्ती' कहा गया है। नेमिचन्द्र ने 'गोम्मटसार' की रचना कनकनन्दि से अध्ययन करके की है, और वे उनके गुरु रहे होंगे या 'गुरु' नाम से वे अधिक ख्यात होंगे। कनकनन्दि द्वारा रचित 'विस्तरसत्त्वत्रिभंगी' नामक ग्रन्थ जैन-सिद्धान्त-भवन, आरा में वर्तमान है। इस ग्रंथ की कागज पर लिखी गयी दो प्रतियाँ विद्यमान हैं। दोनों की गाथा-संख्या में अन्तर है। एक प्रति में 48 और दूसरी में 51 गाथायें हैं। कनकनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्ती ने 'कर्मकाण्ड' के लिखने में सहयोग प्रदान किया होगा और कुछ गाथायें अधिक जोड़कर उसे स्वतन्त्र ग्रंथ का रूप प्रदान किया होगा। कर्मकाण्ड में कनकनन्दि के मतान्तर को देखने से उक्त कथन पुष्ट होता है। इससे स्पष्ट है कि कनकनन्दि अपने समय के प्रसिद्ध आचार्य हैं। 3. प्रबुद्धाचार्य 'प्रबुद्धाचार्य' से हमारा अभिप्राय ऐसे आचार्यों से है, जिन्होंने अपनी प्रतिभा द्वारा ग्रन्थ-प्रणयन के साथ विवृत्तियाँ और भाष्य भी रचे हैं। यद्यपि 'सारस्वताचार्य' और 'प्रबुद्धाचार्य' – दोनों में ही प्रतिभा का बाहुल्य है, पर दोनों की प्रतिभा के तारतम्य में अन्तर है। जितनी सूक्ष्म निरूपण-शक्ति सारस्वताचार्यों में पायी जाती है, उतनी सूक्ष्म निरूपण-शक्ति प्रबुद्धाचार्यों में नहीं है। कल्पना की रमणीयता या 0058 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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