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________________ अमितगति बहुश्रुत आचार्य थे। उन्होंने विविध विषयों पर ग्रन्थों का निर्माण किया है। काव्य, न्याय, व्याकरण, आचार-प्रभृति अनेक विषयों के विद्वान् थे। इन्होंने 'पंचसंग्रह' की रचना 'मसूतिकापुर' में की थी। यह स्थान 'धार' से सात कोस दूर 'मसीदकिलौदा' नामक गाँव बताया जाता है। अमितगति का समय विक्रम संवत् की 11वीं शताब्दी है। अमितगति की अनेक रचनायें मानी जाती है पर जिन्हें निर्विवादरूप से अमितगति की रचना माना गया है, वे हैं - सुभाषितरत्नसंदोह, धर्मपरीक्षा, उपासकाचार, पंचसंग्रह, आराधना, भावनाद्वात्रिंशतिका, चन्द्र-प्रज्ञप्ति एवं व्याख्या-प्रज्ञप्ति। उपर्युक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त लघु एवं वृहत् सामायिक पाठ, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ग्रन्थ भी इनके द्वारा रचे गये माने जाते हैं। 'सामायिक पाठ' में 120 पद्य हैं। इनमें सामायिक का स्वरूप, विधि और महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। आचार्य अमृतचन्द्रसूरि सारस्वताचार्यों में टीकाकार अमृतचन्द्रसूरि का वही स्थान है, जो स्थान संस्कृत-काव्यरचयिताओं में कालिदास के टीकाकार मल्लिनाथ का है। कहा जाता है कि यदि मल्लिनाथ न होते, तो कालिदास के ग्रन्थों के रहस्य को समझना कठिन हो जाता। उसी तरह यदि अमृतचन्द्रसूरि न होते, तो आचार्य कुन्दकुन्द के रहस्य को समझना कठिन हो जाता। अतएव कुन्दकुन्द आचार्य के व्याख्याता के रूप में और मौलिक ग्रन्थ-रचयिता के रूप में अमृतचन्द्रसूरि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। निश्चयतः इन आचार्य की विद्वत्ता, वाग्मिता और प्रांजल शैली अप्रतिम है। इनका परिचय किसी भी कृति में प्राप्त नहीं होता है; पर कुछ ऐसे संकेत अवश्य मिलते हैं, जिनसे इनके व्यक्तित्व का निश्चय किया जा सकता है। __ आध्यात्मिक विद्वानों में कुन्दकुन्द के पश्चात् यदि आदरपूर्वक किसी का नाम लिया जा सकता है, तो वे अमृतचन्द्रसूरि ही हैं। ये बड़े निस्पृह आध्यात्मिक आचार्य थे। __पंडित आशाधर ने अमृतचन्द्रसूरि का उल्लेख 'ठक्कुर पद' के साथ किया है। ठक्कुर का प्रयोग जागीरदार या जमींदारों के लिये होता है। इससे निश्चित है कि वे किसी सम्मानित कुल के व्यक्ति थे। संस्कृत और प्राकृत इन दोनों ही भाषाओं पर इनका पूर्ण अधिकार था। ये मूलसंघ के आचार्य थे। पट्टावली में अमृतचन्द्र के पट्टारोहण का समय विक्रम संवत् 962 दिया है, जो ठीक प्रतीत होता है। अमृतचन्द्रसूरि की रचनायें दो भागों में विभक्त हैं, जो इस प्रकार हैं, 1. मौलिक रचनायें – पुरुषार्थसिद्धयुपाय, तत्त्वार्थसार, समयसारकलश; एवं 2. टीका-ग्रन्थ - समयसार-टीका, प्रवचनसार-टीका, पंचास्तिकाय-टीका। आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती सिद्धान्तग्रन्थों के अभ्यासी को 'सिद्धान्तचक्रवर्ती' का पद प्राचीन समय से ही 1054 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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