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________________ 775-840 ईस्वी प्रमाणित होता है। 27 1. आचार्य विद्यानन्दि की रचनाओं को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता स्वतन्त्र - ग्रंथ, एवं 2. टीका- ग्रंथ । स्वतन्त्र - ग्रंथ में आप्तपरीक्षा स्वोपज्ञवृत्तिसहित, प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, सत्यशासनपरीक्षा, श्रीपुरपार्श्वनाथस्तोत्र एवं विद्यानन्दमहोदय रचनायें आती हैं, जबकि टीका- ग्रंथों में अष्टसहस्री, तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक एवं युक्त्यनुशासनालंकार रचनायें हैं। - आचार्य देवसेन देवसेन ने भी प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश भाषा में रचनाओं का प्रणयन किया होगा। उनकी सरस्वती - आराधना का काल विक्रम संवत् 990 (ईस्वी सन् 933) से विक्रम संवत् 1012 ( ई. सन् 955) तक है। दर्शनसार, भावसंग्रह, आराधनासार, तत्त्वसार, आलापपद्धति, लघुनयचक्र आदि ग्रन्थों के रचयिता विमलसेनगणि शिष्य देवसेनगणि हैं। आचार्य अमितगति प्रथम नेमिषेण गुरु तथा देवसेन के शिष्य अमितगति 'प्रथम अमितगति' हैं। इन्होंने प्रथम अमितगति को ‘त्यक्तनि:शेषशंग' विशेषण देकर अपने को उनसे पृथक् सिद्ध किया है। अमितगति द्वितीय का समय विक्रम संवत् 1050 है। इनके द्वारा उल्लिखित अमितगति, प्रथम इनसे दो पीढ़ी पूर्व होने से उनका समय विक्रम संवत् 1000 निश्चित होता है। इनका एकमात्र ‘योगसारप्राभृत' नामक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, जो प्रकाशित हो चुका है। यह ग्रन्थ 9 अधिकारों में विभक्त है 1. जीवाधिकार, 2. अजीवाधिकार, 3. आस्रवाधिकार, 4. बन्धाधिकार, 6. संवराधिकार, 7. निर्जराधिकार, 7. मोक्षाधिकार, 8. चारित्राधिकार एवं नवम अधिकार को नवाधिकार या नवमाधिकार के नाम से उल्लिखित किया है। इस अधिकार की संज्ञा चूलिकाधिकार के रूप में की गयी है। योग-सम्बन्धी ग्रन्थों में 'योगसारप्राभृत' का महत्त्वपूर्ण स्थान है। निःसन्देह योग के अध्ययन, मनन और चिन्तन के लिये यह नितान्त उपादेय है। आचार्य अमितगति द्वितीय ➖➖➖➖➖➖ आचार्य अमितगति द्वितीय भी प्रथितयश सारस्वताचार्य हैं। ये माथुर संघ के आचार्य थे। दर्शनसारकर्त्ता देवसेन ने अपने 'दर्शनसार' में माथुर संघ को जैनाभासों में परिगणित किया है। इन्हें निःपिच्छिक भी कहा गया है, क्योंकि इस संघ के मुनि मयूरपिच्छ नहीं रखते थे। यह संघ काष्ठासंघ की एक शाखा है। इस संघ की उत्पत्ति वीरसेन के शिष्य कुमारसेन द्वारा हुई है। श्री पण्डित विश्वेश्वरनाथ ने अमितगति द्वितीय को वाक्पतिराज मुज की सभा के एक रत्न के रूप में स्वीकार किया है। भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ 0 53
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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