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________________ ही उत्तरकालीन जैन ग्रन्थकारों ने अपनाया। बौद्धों के साथ इनका खूब संघर्ष रहा। ये स्वामी समन्तभद्र के द्वारा प्रवर्तित जैन - न्याय- परम्परा के सुयोग्य उत्तराधिकारी थे। इन्होंने उनके 'आप्तमीमांसा' ग्रन्थ पर 'अष्टशशती' नामक भाष्य की रचना की थी। 13 डॉ. कासलीवाल द्वारा प्रस्तुत की गई प्रमुख आचार्य - अणुक्रमणिका के अनुसार 13वीं शताब्दी तक 122 प्रभावशाली आचार्य हुये, जिन्होंने समाज और दोनों के प्रचार-प्रसार में योगदान दिया । 14 — उपरोक्त आचार्य ग्रन्थ-लेखन में समर्पित रहते थे। इसी परम्परा में 9वीं सदी में आचार्य जिनसेन हुये, जिन्होंने 'हरिवंश - पुराण' नामक ग्रन्थ की रचना की। उनके 'हरिवंश पुराण' से समाज में कृष्ण-कथा का व्यापक प्रचार हुआ और 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ का जीवन लोकप्रिय बन गया । 15 इसके पश्चात् आचार्य वीरसेन के शिष्य एक अन्य आचार्य जिनसेन हुये, जो विशाल बुद्धि के धारक, कवि, विद्वान् और साहित्यकार थे। जिनसेन के शिष्य थे आचार्य गुणभद्र, जिन्होंने अपने गुरु के लिये लिखा है कि “जिसप्रकार हिमालय से गंगा का उदय और उदयाचल से सूर्य का उदय होता है, उसीप्रकार वीरसेन से जिनसेन का उदय हुआ है।" 'आदिपुराण' का अन्तिम भाग एवं 'उत्तर - पुराण' की रचना करके उन्होंने पुराण- जगत् में एक अभूतपूर्व कार्य किया। ये कार्य जैन-जगत् के भविष्य के लिये वरदान सिद्ध हुआ। जिनसेनाचार्य ने 'महापुराण' लिखने का संकल्प किया, किन्तु उसे पूरा नहीं कर पाये । 'महापुराण' में चौबीस (24) तीर्थंकरों के जीवन का पूरा वर्णन मिलता है। 16 इनकी मृत्यु के पश्चात् इनके शिष्य गुणभद्राचार्य ने 'महापुराण' के लेखन का कार्य पूरा किया। 17 आचार्य जिनसेन के गुरु वीरसेन थे, जिन्होंने 'छक्खंडागमसुत्त' के प्रथम स्कंध की चारों विभक्तियों पर 'धवला' नाम की 20 हजार श्लोकप्रमाण टीका लिखने का श्रेय प्राप्त किया। इसके पश्चात् आचार्य जिनसेन ने उसे पूरा किया। तीनों ही गुरु-शिष्यों अर्थात् वीरसेन, आचार्य जिनसेन एवं आचार्य गुणभद्र ने जितना अधिक साहित्य का सृजन किया, वह अपने आप में अनूठा है। 18 9वीं शताब्दी में महावीराचार्य हुये, जिन्होंने 'गणितसार' लिखकर गणित - साहित्य में एक अभूतपूर्व रचना प्रस्तुत की। इसके पश्चात् अपभ्रंश-काल आरम्भ हुआ और जोइन्दु, स्वयंभू, पुष्पदन्त, वीर, नयनन्दि, एवं रइधू जैसे कवि हुये, जिन्होंने अपभ्रंश - साहित्य का प्रणयन करके जनसामान्य को बोलचाल की भाषा में काव्य, पुराण एवं चरित्र - प्रधान साहित्य उपलब्ध कराया। 19 डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ज्योतिषाचार्य दिगम्बर- आरातीय-आचार्य - परम्परा को निम्नलिखित पाँच भागों में विभक्त करके उनका कथन किया है20 1. श्रुतधराचार्य, 2. सारस्वताचार्य, 3. प्रबुद्धाचार्य, 4. परम्परापोषकाचार्य, एवं 5. आचार्य तुल्य कवि और लेखक भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ 00 33
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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