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________________ केवलणाणी य अंतिमजिणणिव्वाणे गोदम- मुणिंदो । बारहवासे य गणी सुधम्मसामी य संजादो ॥ 1॥ तह बारहवासे पुण संजादो जंबुसामि मुणिणाहो । अठतीस - वास- रहियो केवलणाणी य उक्किट्ठो ॥ 2॥ बासठि केवलवासे तिहि मुणी गोदम-सुधम्म- जम्बू य बारह - बारह दो जण तिय दुगहीणं च चालीसं ॥3॥ सुदकेवलि पंच- जणा बासठि वासे गदे सुसंजादा । पढमं चउदह- वासं विण्हुकुमारं मुणेदव्वं ॥4॥ सुपुव्वहरा । जादा ॥7॥ दिमित्त वास - सोलह तिय अपराजिय वास वावीसं । इग- हीण-वीस वासं गोवद्धण भद्दबाहु सद सुदकेवलणाणी पंच जणा विण्हु - अपराजिय-गोवद्धण तह भद्दबाहू य सद-वासट्ठि-सुवासे गदे सु उप्पण्ण दह सद-तिरासि-वासाणि य एगारह मुणिवरा आयरिय विसाख- पोट्ठल- खत्तिय - जयसेण - णागसेण मुणी । सिद्धत्थ धित्ति विजयं बुहिलिंग देव धम्मसेणं ॥ 8 ॥ दह उगणीस य सत्तर इकवीस अट्ठारह सत्तर । अट्ठारह तेरह वीस चउदह चोदस ( सोलह ) कमेणेयं ॥9॥ अंतिम जिण- णिव्वाणे तियसय- पण चालवास जादेसु । गादहंगधारि य पंच जणा मुणिवरा जादा ॥10॥ णक्खत्तो जयपालग पंडव धुवसेण कंस आयरिया । अट्ठारह वीसवासं गुणचालं चोद-बत्तीसं ॥11॥ सद-तेवीस-बा एगादह - अंगधरा जादा । वासं सत्ताणवदि य दसंग - णव- अंग- अट्ठधरा ॥12॥ सुभद्दं च जसोभद्दं भद्दबाहु कमेण च। लोहाचरिय- मुणीसं च कहिदं च जिणागमेतच्चं ॥13॥ छह-अट्ठारह-वासे तेवीस वावण (पणास ) वास मुणिणाहं । दस णव अट्ठगधरा वास दुसदवीस सद्धे ॥14॥ पंचसये पणसठे अंतिम - जिण-समय- जादेसु । उप्पणा पंच जणा एयंगधारी मुणेदव्वा ॥15॥ अहिवल्लि माघणंदि य धरसेणं पुप्फदंत भूदबली । अठवीसं ढगवीस इगणीसं तीस वीस वास पुणो ॥16॥ इगसय अठार - वासे एयंगधारी य मुणिवरा जादा । छसय-तिरासिय- वासे णिव्वाणा अंगद्दित्ति कहिद जिणे ॥17॥ 8 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ गुणतीसं ॥5॥ दिमित्तो य । संजादा ॥6॥ 00 29
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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