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________________ विद्यमान था। वहाँ के प्राचीन 'चोल' और 'पाण्ड्य' नरेशों ने जैनधर्म को भरपूर आश्रय दिया। पाण्ड्यों की राजधानी 'मदुरा' दक्षिण-भारत में जैनों का प्रमुख तीर्थ-स्थान बन गयी थी। दक्षिण-भारत के एक जैनाचार्य कुन्दकुन्द ने सम्पूर्ण भारत में जैनधर्म व दर्शन के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। चीनी यात्री ह्वेनसांग सातवीं शताब्दी में कांचीपुरम्' आया था। उसने यहाँ जिन धर्मों को देखा, उनमें जैनों का नाम भी मिलता है। कर्नाटक व तेलुगू में भी जैनधर्म का भारी प्रचार था। इसप्रकार कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश व उड़ीसा तक जैनधर्म का बड़ा प्रभाव था; किन्तु दक्षिण भारत में जैनधर्म के इतिहास में 'कर्नाटक' को विशेष-स्थान प्राप्त है। यह स्थान प्राचीनकाल से ही दिगम्बर-जैन-सम्प्रदाय का प्रमुख स्थान रहा है। कर्नाटक में भगवान् बाहुबलि की विशाल खड्गासन प्रतिमा इसका जीवन्त प्रमाण है। कर्नाटक के बेलगाँव जिले में दिगम्बर जैनों की जनसंख्या वर्ष 1971 में 110135 दर्ज की गई।51 यहाँ एक बात और उल्लेखनीय है कि जहाँ उत्तरी भारत में अधिकांश जैन-मतानुयायी शहरों में निवास करते हैं, वहीं कर्नाटक-प्रान्त में अधिसंख्य जैन ग्रामीण-क्षेत्रों में निवास करते हैं। वर्ष 1971 में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के 907002 जैन-मतानुयायी ग्रामीण-क्षेत्र के थे।52 दक्षिण-भारत में राजस्थान, गुजरात व महाराष्ट्र में व्यवसाय-हेतु बसे हुये जैन-मतानुयायियों की संख्या भी पर्याप्त है। जैनधर्म के विस्तार की दृष्टि से महाराष्ट्र का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। कुछ विद्वान् कर्नाटक का पड़ोसी होने के कारण महाराष्ट्र को दक्षिण भारत में सम्मिलित कर लेते हैं। उत्तरी-महाराष्ट्र में मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान के जैन-समुदायों की संख्या अधिक है, किन्तु औरंगाबाद आदि दक्षिणी-महाराष्ट्र में कर्नाटक-मूल के जैन अधिक पाये जाते हैं। सन् 1981 ई. की जनगणना के अनुसार महाराष्ट्र में जैनों की संख्या इसप्रकार दर्शायी गयी है53बम्बई महानगर 341980 कोल्हापुर 121722 सांगली 67314 65907 ठाणे अहमदनगर 33565 नासिक 28792 जलगाँव 24589 सोलापुर 24141 औरंगाबाद 23328 45509 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ 0019
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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