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________________ मगध लाये जाने का उल्लेख यह सिद्ध कर देता है कि महावीर के काल से ही कलिंग में जैनधर्म का प्रचार था और वहाँ जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों की पूजा की जाती थी। खारवेल के शिलालेख की तरह ही प्रसिद्ध मथुरा के पुरातात्त्विक साक्ष्य प्रकट करते हैं कि ईसा की प्रथम शताब्दी से बहुत पहले से मथुरा जैनधर्म का एक प्रमुख केन्द्र था। इसप्रकार उत्तर- भारत के प्रत्येक प्रान्त में महावीर के निर्वाण के पश्चात् लगभग पाँच शताब्दियों तक जैनधर्म तेजी के साथ उन्नति करता रहा। अधिक विस्तार में जाये बिना सतही तौर पर जैनधर्म के विस्तार - क्षेत्रों की जानकारी ना प्रासंगिक रहेगा। बिहार तो भगवान् महावीर की जन्मभूमि, तपोभूमि, कर्मभूमि व निर्वाणभूमि थी। वहाँ के राजघरानों में जैनधर्म का अच्छा प्रचार व प्रसार हुआ। बिहार में ही सम्मेद शिखर, राजगृह, पावापुरी, कुण्डग्राम जैसे जैन तीर्थ आज भी प्रतिवर्ष हजारों लाखों यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। कलिंग इसका प्रमुख - केन्द्र रहा है। हाथीगुम्फा-अभिलेख के अनुसार कलिंग का शासक खारवेल तो जैन था ही, साथ उड़ीसा का सारा राष्ट्र उस समय जैन ही था। उड़ीसा में खण्डगिरि व उदयगिरि की गुफायें आज भी जैनधर्म के प्रमुख तीर्थ स्थानों में सम्मिलित हैं। जैनधर्म का आदि और पवित्र स्थान मगध और पश्चिम बंगाल समझा जाता है। बंगाल का 'वर्धमान' जिला वर्द्धमान ( महावीर) के नाम पर ही बना है। वहाँ के वीरभूमि, सिंहभूमि व मानभूमि जिलों का नामकरण महावीर स्वामी के 'वर्धमान' नाम के एवं उनके चिह्न के आधार पर ही हुआ है। बंगाल के पश्चिमी हिस्से में जो 'सराक' जाति पाई जाती है, वह जैन श्रावकों की पूर्व स्मृति कराती है। आज भी बहुत-से जैन - मन्दिरों के ध्वंसावशेष, जैन- मूर्तियाँ, शिलालेख इत्यादि जैन स्मृति चिह्न बंगाल के भिन्न-भिन्न भागों में पाये जाते हैं। 38 'बांकुरा' और 'वीरभूमि' जिलों में आज भी जैन - प्रतिमाओं के मिलने के समाचार पाये जाते हैं। मानभूमि में पंचकोट के राजा के अधीनस्थ अनेक गाँवों में विशाल जैन-मूर्तियों की पूजा हिन्दू पुरोहित या ब्राह्मण करते हैं। वे 'भैरव' के नाम से पुकारी जाती हैं और नीच या शूद्र जाति के लोग वहाँ पशु-बलि भी करते हैं। इन सब मूर्तियों के नीचे अब भी जैनलेख मिल जाते हैं। 39 ऐसी मान्यता है कि भगवान् महावीर के 1,000 वर्ष तक यहाँ जैन- समाज फला-फूला; लेकिन मुस्लिम - काल में उसका निरन्तर पतन होता गया । सम्राट् अकबर के शासनकाल में पुनः बंगाल में जैनधर्म का उत्थान होता हुआ दिखाई देता है। अकबर के शासनकाल में 'आमेर के राजा मानसिंह बंगाल के सूबेदार रहे थे। उस समय अनेक जैन व्यापारी व सरकारी अधिकारी राजस्थान से बंगाल में जाकर बस गये थे। प्रसिद्ध 'जगतसेठ' भी जैन समुदाय से सम्बन्धित था। यह परिवार भी मानसिंह के साथ ही बंगाल गया था। ऐसे ही एक जैन - पदाधिकारी 'नानूगोधा' का 0014 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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