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________________ स्वामी ने पाँचवाँ सिद्धांत 'ब्रह्मचर्य' जोड़कर उसे पञ्चमहाव्रत के रूप में प्रतिष्ठित किया था।7 महावीर स्वामी का जन्म 599 ईसापूर्व बिहार प्रान्त के 'कुण्डग्राम' नगर के राजा सिद्धार्थ के घर में हुआ। उनकी माता त्रिशला वैशाली-गणतंत्र के अध्यक्ष राजा चेटक की पुत्री थी।28 महावीर का जन्म चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन हुआ था। इस दिन भारतवर्ष में महावीर की जयन्ती बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। वर्तमान में जैनों में 'वीरनिर्वाण-सम्वत्' प्रचलित है, इसका आधार 527 ईस्वी पूर्व में महावीर परिनिर्वाण है। दिगम्बर-परम्परा के अनुसार महावीर अविवाहित ही रहे। न उन्होंने स्त्री-सुख भोगा, न राज-सुख। जिस समय महावीर स्वामी का जन्म हुआ, उस समय भारतीय समाज व धर्म में अनेक बुराईयां व्याप्त थी। उस समय यज्ञ आदि का बहुत जोर था और यज्ञों में पशुबलि बहुतायत से होती थी। बेचारे मूक-पशु धर्म के नाम पर मार दिये जाते थे। करुणा के सागर महावीर के कानों तक भी उन मूक-पशुओं की चीत्कार पहुँची और महावीर का हृदय करुणा से आप्लावित हो उठा। महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की आयु में मुनिदीक्षा धारण कर 12 वर्ष तक कठोर तपस्या की। 42 वर्ष की आयु में उन्हें कैवल्य प्राप्त हुआ। कैवल्य-प्राप्ति के पश्चात् 30 वर्षों तक वे देश के विभिन्न भागों में विहार करते रहे, तथा 72 वर्ष की आयु में उन्होंने निर्वाण को प्राप्त किया। महावीर स्वामी ने 30 वर्ष तक देश-देशान्तरों में विहार करके धर्मोपदेश दिया। वे जहाँ पहुँचते थे, वहीं उनकी उपदेश-सभा (समवसरण) लग जाती थी। इस तरह महावीर स्वामी काशी, कौशल, पंचाल, कलिंग, कुरुजांगल, कन्नौज, सिन्धु, गान्धार आदि देशों में विहार करते हुये अन्त में पावापुरी पहुँचे। महावीर स्वामी के उपदेशों को व्यवस्थित करने तथा उनका स्मरण रखने का कार्य उनके 'गणधर' करते थे। दिगम्बर-साहित्य में महावीर स्वामी के 11 गणधरों के बारे में उल्लेख मिलता है, तथा प्रथम गणधर इन्द्रभूति नाम का 'गौतम' गोत्रीय ब्राह्मण था। उनके ये सभी गणधर ब्राह्मण बताये गये हैं। वे सभी महावीर स्वामी की ज्ञानगरिमा से अभिभूत होने के कारण उनके अनुयायी बने थे। इन्द्रभूति गौतम 'प्रमुख गणधर' पद से विभूषित हुए। इससे महावीर की सारे देश में लोकप्रियता हो गई और भारी जनसमूह जैनधर्म में दीक्षित होने लगा तथा सम्पूर्ण देश में महावीर एवं जैनधर्म को लोकप्रियता मिली। उनके संघ में एक लाख श्रावक, 3 लाख श्राविकायें थीं; इस कारण उनके अनुयायियों की संख्या तो करोड़ों में होनी चाहिये।३० ___ महावीर स्वामी का व्यक्तित्व बड़ा क्रान्तिकारी था। इनके समय में संस्कृति का निर्मल व लोककल्याणकारी रूप विकृत होकर आम-जनता से दूर हो गया था। धर्म के नाम पर कर्मकाण्डों व अन्धविश्वासों में वृद्धि हुई। यज्ञ के नाम पर मूक-पशुओं का वध किया जाता था। वर्णाश्रम-व्यवस्था में भी अनेक विकृतियां घर भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिः 1011
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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