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________________ लाभ प्राप्त हो रहा है। गजरथों का प्रारम्भ पंचकल्याणक महोत्वसों के साथ बुंदेलखण्ड में प्रारम्भ हुआ, इसमें 'सिंघई' की पदवी प्राप्त करने का मुख्य लक्ष्य है, इसमें भगवान् के रथों को हाथियों से चलाया जाता है। - मालवा - क्षेत्र में लगभग 200 जैन परिवार जो धर्म से पिछड़ रहे थे, सरसेठ हुकुमचन्द जी, इन्दौर वालों की दूरदृष्टिता व प्रयास से उन्हें दिगम्बर जैनधर्म में प्रवेश कराकर 'वैद गोत्र' देकर समाज से जोड़ा गया। आचार्य समन्तभद्र जी की प्रेरणा से महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि प्रदेशों में अनेकों ब्रह्मचर्य आश्रम, गुरुकुल, छात्रावास का निर्माण हुआ, जिनमें बड़ी संख्या में छात्रों को धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के अवसर प्राप्त हुये। उनमें से कई छात्र आज उच्च पदों पर आसीन हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु के गाँवों में सैकड़ों वर्षों से दिगम्बर जैन बड़ी संख्या में रहते हैं। जो कृषि - आदि से अपना जीवन व्यतीत करते हैं। उनके बच्चों के लिये यह गुरुकुल आदि अत्यन्त उपयोगी साबित हुई, यहाँ के निवासी धर्म में श्रद्धा, जीवन सादगी के साथ निर्वाह करते हैं। कुछ वर्षों तक दिगम्बर जैन मुनि - महाराजों का अभाव रहा है। बाद में आचार्य शांतिसागर जी ने अपने संघ के साथ अधिकाधिक प्रदेशों का भ्रमण कर समाज में धार्मिक चेतना पैदा की। उनके भ्रमण में इतर समाज ने नाना प्रकार की बाधायें खड़ी कीं, जिनका निवारण समाज ने एकजुट होकर किया व सफलता प्राप्त की। आज देश के प्रत्येक क्षेत्र में बड़ी संख्या में मुनिगणों का भ्रमण बिना किसी बाधा के हो रहा है। आचार्य शांतिसागर जी के संघ के अतिरिक्त दूसरा संघ आदिसागर जी का भी है । आज इस संघ के भी मुनिगण विहार कर रहे हैं। जैन समाज में आचार्य विद्यानन्द जी व आचार्य विद्यासागर का प्रमुख स्थान है। - भगवान् महावीर के 2500वें निर्वाण - महोत्सव पर आचार्य विद्यानन्द जी की प्रेरणा व आशीर्वाद से समस्त जैन समाजों की मान्यता प्राप्त 'जैन प्रतीक', पाँच रंग ध्वज एवं समणग्रंथ की जैन की देन एक ऐतिहासिक निर्णय हुये हैं। दक्षिण- भारत जैन-सभा सांगली (महा.) की प्रसिद्ध संस्था है, जिसके द्वारा पूना से लेकर कोल्हापुर, बेलगाँव आदि क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण कार्य हुये हैं। इनका समाचार-पत्र ‘जैनबोधक' सौ वर्ष से अधिक से प्रकाशित होता है, सम्प्रति इसकी संपादिका सौ. सरयू दफ्तरी जी हैं। यह संस्था अब भी सक्रिय कार्य कर रही है। इस संस्था ने सांगली में 1964 में ' भारत जैन - महामण्डल' का विशाल अधिवेशन कराया, जिसमें भगवान् महावीर का 2500वां निर्वाण - महोत्सव मनाने का निर्णय किया गया। भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ OO 155
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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