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________________ उनके स्वर्गारोहण के पश्चात् महासमिति की एक बैठक 18 दिसम्बर, 1977 को दिल्ली में आयोजित की गई, जिसमें अध्यक्ष का दायित्व साहू श्रेयांस प्रसादजी को सौंपा गया। उन्होंने बड़ी लगन से इसके कार्य की प्रगति की। जिस भावना को लेकर महासमिति का गठन हुआ, वह तो पूर्ण नहीं हुआ। कुछ तत्त्व इसे शक्तिशाली बनाने में बाधा डालते रहे, तथा सामाजिक रीति-रिवाजों में आगम के नाम पर धर्म-विरोधी होने का प्रचार आदि अनेकों कारणों से समाज में वाद-विवाद का वातावरण बना दिया गया। सामाजिक नेतृत्व करने की तीव्र अभिलाषा में कुछ लोगों ने समाज को खण्डित करने में अपना गौरव समझा। साहू श्रेयांसप्रसाद जी ने दिगम्बर जैन महासमिति के अध्यक्ष पद का भार श्री रतनलाल गंगवाल जी को अपने जीवनकाल में ही सौंप दिया, क्योंकि उनका स्वास्थ्य नरम चल रहा था। अभा. दिगम्बर जैन अधिवेशनों, सम्मेलनों, बैठकों में सोनगढ़ ट्रस्ट एवं पं. टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर आदि के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया जाता रहा है, तथा उनके प्रतिनिधि भाग लेते रहे। भगवान् महावीर के 2500वें निर्वाण-महोत्सव समिति में भी उनके प्रतिनिधियों को सम्मिलित किया गया तथा उन्होंने हर कार्य में भरपूर सहयोग दिया व बराबर सहयोग दे रहे हैं। ___ आध्यात्मिक सत्पुरुष कानजी स्वामीजी दिगम्बरतत्त्व में पूर्ण श्रद्धा रखते थे। उन्होंने जब दिगम्बर-जैनधर्म अपनाया, उस समय विरोधियों ने नानाप्रकार की धमकियाँ दीं, हमले करने की योजना बनाई, हमले भी किये। यह जानकारी प्राप्त होते ही सरसेठ हुकुमचन्द जी, साहू शांतिप्रसाद जी व दिगम्बर जैन समाज के प्रसिद्ध विद्वानों व समाज के अग्रणी महानुभावों ने उन्हें सहयोग दिया। उन्होंने आध्यात्मिकता का व्यापक प्रचार किया, अनेकों दिगम्बर जैन-मन्दिरों का निर्माण कराया, हजारों परिवारों ने दिगम्बर जैन-धर्म में प्रवेश किया। आज इनकी संस्थाओं द्वारा देश-विदेशों में व्यापक प्रचार हो रहा है। बड़ी संख्या में साहित्य प्रकाशित होकर घर-घर पहँच रहा है। स्वाध्याय करने का मार्ग व्यापक हुआ, कई समाचार प्रकाशित हो रहे हैं। मुमुक्ष-मण्डल सक्रिय कार्य कर रहे हैं। समाज की अन्य गतिविधियाँ : आचार्य श्री विद्यानंद जी ने अपने दूरदर्शिता से समय-समय पर समाज को टूटने से बचाया, उनके द्वारा व आचार्य विद्यासागर जी व अन्य मुनि-महाराजों, द्वारा व्यापकरूप से धर्म के प्रचार-प्रसार के कार्य चल रहे हैं। धर्म जोड़ता है, तोड़ता नहीं - इसका संदेश दे रहे हैं। सामूहिक विवाह : विवाहों में होने वाले अपव्यय के कारण सामूहिक विवाह प्रारंभ हुये, जिसमें सभी समाजों के बन्धुओं का सहयोग प्राप्त हुआ। बैरिस्टर जमुनाप्रसाद जी, सेठ भगवानदास शोभालाल जी आदि के नेतृत्व में सामूहिक विवाहों के आयोजन प्रारम्भ हुये व उन्होंने अपने बच्चों के विवाह भी सम्पन्न कराये, आज अनेकों जातियों व संस्थाओं द्वारा भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में आयोजित हो रहे हैं, जिसका 00154 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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