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________________ 'खण्डेलवाल' जाति का नामकरण 'खण्डेला' नगर के कारण हुआ। 'खण्डेला' नगर राजस्थान के 'सीकर' जिले में स्थित है, जो सीकर से 45 कि.मी. दूर है। खण्डेला के इतिहास की अभी पूरी खोज नहीं हो सकी है, लेकिन श्रीहर्ष की पहाड़ी पर जो जैन-अवशेष मिलते हैं, उससे पता चलता है कि शैव-पाशुपतों का केन्द्र बनने के पहले यह 'खण्डेला' नगर जैनों का प्रमुखकेन्द्र था। इसका पुराना नाम 'खंडिल्लकपत्तन' अथवा 'खण्डेलगिरि' था। भगवान् महावीर के 10वें गणधर 'मेदार्य' ने 'खण्डिल्लकपत्तन' में आकर कठोर तपस्या की थी – ऐसा उल्लेख आचार्य जयसेन ने अपने ग्रन्थ 'धर्मरत्नाकर' की प्रशस्ति में किया है। आचार्य जयसेन 11वीं शताब्दी के महान् सन्त अमृतचन्द्र एवं सोमदेव के बाद के आचार्य थे। श्री वर्धमाननाथस्य मेदार्यो दशमोऽजनि। गणभृद्दशधा धर्मो यो मूर्तो वा व्यवस्थितः॥ मेदार्येण महर्षिभिर्विहरता तेपे तपो दुश्चरं। श्री खडिल्लकपत्तनान्ते करणाभ्यद्धिप्रभावात्तदा॥ खण्डेला का इतिहास 'खण्डेला' का राजनैतिक इतिहास अधिकांशरूप में तो अन्धकारपूर्ण है। प्रारम्भ में यहाँ चौहान-राजाओं का राज्य रहा। 'हम्मीर' महाकाव्य में भी 'खण्डेला' का नामोल्लेख हुआ है। महाराणा कुम्भा ने भी 'खण्डेला' पर अपनी विशाल सेना को लेकर आक्रमण किया था तथा नगर की खूब लूट-खसोट की थी। सन् 1467 में यहाँ उदयकरण का शासन था, ऐसा 'वर्धमान-चरित' की प्रशस्ति में उल्लेख मिलता है। रायसल 'खण्डेला' के प्रसिद्ध शासक रहे तथा जो अपने मन्त्री देवीदास के परामर्श से मुगल-सेना में भर्ती हुये और अपनी वीरता एवं स्वामिभक्ति के सहारे मुगल बादशाह अकबर के कृपा-पात्र बन गये और 'खण्डेला' एवं अन्य नगरों की जागीरी प्राप्त की। वे बराबर आगे बढ़ते रहे। रायसल जी के समय में ही 'खण्डेला' चौहानों के हाथों में से निकलकर शेखावतों के हाथों में आया। भादवा सुदी 13 रविवार, विक्रम संवत् 101 के शुभदिन खण्डेला में विशेष दरबार लगाया गया। सभी सामन्तों एवं दरबारियों को आमन्त्रित किया गया। आचार्यश्री जिनसेन अपने संघ के कुछ साधुओं के साथ दरबार-हाल में गये। सारा दरबार-हाल 'भगवान् महावीर की जय, आचार्य जिनसेन की जय' के नारों से गूंजने लगा। महाराजा खण्डेलगिरि को उनके परिवार के साथ जैनधर्म में दीक्षित किया गया तथा अहिंसाधर्म का कट्टरता से पालन करने का नियम दिलाया गया। महाराजा खण्डेलगिरि के साथ 13 अन्य चौहान परिवारवाले सामन्तगणों को भी जैनधर्म में दीक्षित किया गया। (1) महाराजा खण्डेलगिरि, (2) राजा श्री भावस्यंध जी, 00120 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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