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________________ क्र.सं. जाति-नाम 33. नेमा 263 35. नरसिंहपुरा ( दस्साबीसा) 7065 37. मेवाडा 2160 39. चित्तौड़ा ( दस्साबीसा) 41. सेलवार 43. 45. सादर (जैन) जैन दिगम्बर क्र.सं. जाति-नाम 34. भवसागर 36. सेतवाल 38. 857 40. 433 42. 44. 46. 48. 47. उपाध्याय 49. खुरसाले जनसंख्या नागदा श्रीमाल श्रावक बोगार 11241 9772 1218 240 20 अन्य जातियों की जनसंख्या 100 से कम है और सब मिलाकर 726 हैं। हरदर ब्राह्मण जैन इनमें से कुछ प्रमुख जैन जातियों का परिचय निम्नप्रकार है भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ जनसंख्या - 80 20869 3551 780 8467 2431 236 704 1. खण्डेलवाल खण्डेलवाल जैन-र - समाज राजस्थान, मालवा, आसाम, बिहार, बंगाल, नागालैण्ड, मणिपुर, उत्तरप्रदेश के कुछ जिलों में एवं महाराष्ट्र में बहुसंख्यक समाज रहा है और आज भी मुम्बई, कोलकाता, जयपुर, इन्दौर, अजमेर जैसे नगर ऐसे केन्द्र माने जाते हैं, जहाँ खण्डेलवाल जैन समाज बहुसंख्यक समाज है। इस समाज में अनेक आचार्य, मुनि, भट्टारक, क्षुल्लक, ब्रह्मचारी हुये, जिन्होंने देश एवं समाज को प्रभावशाली मार्गदर्शन दिया। सैकड़ों-हजारों मन्दिरों के निर्माणकर्त्ता, प्रतिष्ठा - कारक, मूर्ति - प्रतिष्ठा करानेवालों को उत्पन्न करने का श्रेय इसी समाज को है। इस समाज में पचासों दीवान अथवा प्रमुख राज्य संचालक उच्च पदस्थ - राज्याधिकारी हुये, जिन्होंने सैकड़ों वर्षों तक जयपुर-राज्य की अभूतपूर्व सेवा की एवं युद्धभूमि में विजय प्राप्त की। राजस्थान के सैकड़ों मन्दिर इसी समाज के द्वारा निर्मित हैं। अकेले जयपुर नगर में 200 से अधिक मन्दिरों का निर्माण इस समाज की धार्मिक निष्ठा का प्रतीक है। सांगानेर, मोजमाबाद, टोडारायसिंह, लाडनूं, सुजानगढ़, सीकर में इस समाज के लोगों द्वारा निर्मित मन्दिरों के उन्नत शिखरों की शोभा देखते ही बनती है। - इस समाज की धार्मिक आस्था तथा व्रत-उपवास, पूजा एवं भक्ति आदि कार्यों में रुचि से सारा दिगम्बर जैन समाज अनुप्राणित है। उसके प्रत्येक रीति-रिवाजों में श्रमण संस्कृति की झलक दिखाई देती है, तथा उसका प्रत्येक सदस्य जैनधर्म के प्रतिनिधि के रूप में अपने आपको प्रस्तुत करता है। सारे देश में फैले हुये खण्डेलवाल जैन संख्या की दृष्टि से भी उल्लेखनीय है, जो दस लाख के करीब है, अर्थात् पूरे दिगम्बर जैन - स - समाज का लगभग पांचवाँ हिस्सा है। 00119
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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