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________________ हुआ था। इनके पिता का नाम 'आनन्दराम' था। जाति खण्डेलवाल और गोत्र कासलीवाल था। जयपुर के महाराज से इनका विशेष परिचय था। ये उदयपुर राज्य में जयपुर के वकील बनकर गये थे, और वहाँ 30 वर्षों तक रहे। संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे। हिन्दी-गद्यसाहित्य के क्षेत्र में सबसे पहली रचना इन्हीं दौलतराम की उपलब्ध है। ___ इनका समय विक्रम की 18वीं शती का अंतिम भाग और 19वीं शती का पूर्वार्द्ध है। इन्होंने निम्नलिखित रचनायें लिखी हैं - 1. पुण्यास्रववचनिका (वि. सं. 1777), 2. क्रियाकोषभाषा (वि. 1795), 3. आदिपुराणवचनिका (सं. '1824), 4. हरिवंशपुराण (सं. 1829), 5. परमात्मप्रकाशवचनिका, 6. श्रीपालचरित (सं. 1822), 7. अध्यात्मबाराखड़ी (वि. सं. 1728), 8. वसुनन्दीश्रावकाचार टब्बा (वि. सं. 1818), 9. पदमपुराणवचनिका (सं. 1833), 10. विवेकविलास (वि. सं. 1829), 11. तत्त्वार्थसूत्रभाषा, 12. चौबीसदण्डक, 13, सिद्धपूजा, 14. आत्मबत्तीसी, 15. सारसमुच्चय, 17. जीवंधरचरित (वि. सं. 1805), 17. पुरुषार्थसिद्धुपाय वचनिका, जो पं. टोडरमल जी पूर्ण नहीं कर पाये थे। कवि आचार्यकल्प पं. टोडरमल महाकवि आशाधर क अनुपम व्यक्तित्व की तुलना करेवाला व्यक्तित्व आचार्यकल्प पं. टोडरमल जी का है। ये स्वयंबुद्ध थे। इनका जन्म जयपुर में हुआ था। पिता का नाम 'जोगीदास' और माता का नाम 'रमा' या 'लक्ष्मी' था। इनकी जाति खण्डेलवाल और गोत्र गोदीका था। इनकी प्रतिभा विलक्षण थी। इसका एक प्रमाण यही है कि इन्होंने किसी से बिना पढ़े ही कन्नड़ लिपि का अभ्यास कर लिया था। ___अब तक के उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर इनका समय वि. सं. 1797 है, और मृत्यु सं. 1824 है। मात्र 18-29 वर्ष की अवस्था में ही गोम्मटसार, लब्धिसार, क्षपणसार एवं त्रिलोकसार के 65,000 श्लोकप्रमाण की टीका कर इन्होंने जनसमूह में विस्मय भर दिया था। टोडरमल जी की कुल 11 रचनायें हैं, जिनमें सात टीकाग्रन्थ और चार मौलिक-ग्रन्थ हैं। मौलिक-ग्रंथों में 1. मोक्षमार्गप्रकाशक, 2. आध्यात्मिक पत्र, 3. अर्थसंदृष्टि, और 4. गोम्मटसारपूजा परिगणित हैं। उनके द्वारा रचित टीकाग्रन्थ हैं - 1. गोम्मटसार (जीवकाण्ड)-सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका, 2. गोम्मटसार (कर्मकाण्ड)सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका, 3. लब्धिसार—सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका, 4. क्षपणासार-वचनिका, 5. त्रिलोकसार, 6. आत्मानुशासन, एवं 7. पुरुषार्थसिद्धयुपाय। कवि दौलतराम द्वितीय कवि दौलतराम द्वितीय लब्धप्रतिष्ठ कवि हैं। ये हाथरस के निवासी और भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ 0089
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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