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________________ अलबेली आम्रपाली ५५ देखा। वह मात्र पचास वर्ष की उम्र का था। किन्तु वह पचीस वर्ष के नवयुवक जैसा तरुण लगता था। शरीर का रंग गहरा लाल होने पर भी तेजस्वी था। आंखें भय पैदा करने वाली थीं। उसके सिंहासन के पास चार अर्धनग्न तरुणियां खड़ी थीं। वे चामर डुला रही थीं। बिबिसार और धनंजय-दोनों ने सिंहासन के निकट जाकर मस्तक नवाकर हाथ जोड़े। फिर बिंबिसार से मधुर स्वर में कहा-"राजेश्वर शंबुकराज की जय हो। जिसकी कीर्तिगाथा को सुनकर देवता भी आकर्षित होते हैं, ऐसे समर्थ और शक्तिशाली महाराजाधिराज की जय हो।" बिंबिसार ने यह बात प्राकृत भाषा में कही थी। इसलिए शंबुक अत्यन्त प्रसन्न होकर बोला-"तेरी उम्र छोटी है। कहां से आया है ?" "महाराज, मैं उत्तर भारत से आया हूं।" "क्यों आया है ? तेरा नाम क्या है ?" "महाराज ! इस सेवक का नाम है जयकीर्ति । मैं उत्तर भारत का प्रसिद्ध वीणावादक हूं । एक वर्ष पूर्व एक संगीतज्ञ ने आपकी उदारता और संगीत-प्रेम के विषय में मुझे बताया था और उसने मुझे आग्रहपूर्वक आपसे मिलने के लिए कहा था। मैं आपका मनोरंजन करने आया हूं।" "हं.. तेरे साथ यह कौन है ?" "यह मेरा साथी है । किन्तु एक मेरी मंदभाग्यता।" कहते-कहते बिंबिसार रुक गया। एक तरुणी ने राक्षसराज के हाथ में मद्य का पात्र दिया और शंबुक ने उसे एक ही श्वास में पी डाला। उसने पूछा-"युवक ! निःसंकोच बता कि तेरी मंदभाग्यता क्या थी?" "मेरे साथ मृदंग और वेणुवादक-दो साथी और थे । परन्तु मार्ग में उनको किसी ने भड़का दिया और वे वहां से भाग छुटे ।" राक्षस ने अट्टहास करते हुए कहा-"और तू नहीं भड़का ?" "आपकी उदारता, मूल्यांकन की वृत्ति और संगीत-प्रेम के प्रति मेरे में विश्वास जग गया था। "तेरी वीणा में कौन-सी शक्ति है ?" "यह तो आप सुनेंगे तब पता चलेगा। मैं अपनी विशेषता स्वयं क्या बताऊं।" "हं.. हं.. किसी के निद्रा-भंग न होती हो तो क्या तू उसकी निद्रा-भंग कर सकता है ?" "हां, महाराज !"
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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