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________________ ५४ अलबेली आम्रपाली आप जीते कैसे हैं ? हमारे यहां तो ऐसे आठ-दस रोट खा लेना सामान्य बात है ।" बिबिसार ने हंसते हुए तरुणी से कहा - " देवि ! इसीलिए तो आप सबकी शक्ति अजोड़ है ।" चारों भोजन कर चुके । तत्काल एक दासी ने पूछा - " मद्यपान करेंगे ?" "नहीं ।" कुछ ही समय के पश्चात् एक राक्षस बोला -- " महाराजाधिराज महाराज शंबुक साथ चलें ।” सैनिक आया और मस्तक झुकाकर आपको याद कर रहे हैं। आप मेरे बिबिसार और धनंजय उनके साथ चल दिये । लगभग एक घटिका पर्यन्त भूगर्भ मार्ग में चलते रहे। सामने एक दीवार आयी। वहां दो मशाल जल रहे थे। राक्षस ने दीवार में लगे एक कड़े को बाहर खींचा। तत्काल दीवार में एक पत्थर सरका । बिबिसार ने देखा की भीतर एक सोपान श्रेणी है। उस राक्षस के साथ सभी सोपान श्रेणी चढ़ने लगे । लगभग सौ सीढ़ियां चढ़ने के पश्चात् एक दूसरा द्वारा आया । वह खुला था। वहां भयंकर आकृति वाले दो राक्षस खड़े थे । सभी उस द्वार मार्ग से एक खण्ड में आए । बिंबिसार ने देखा कि उस खण्ड में सिंह, बाघ और मृग के चर्म यत्र-तत्र दीवारों की खूटियों पर लटक रहे थे । प्रत्येक कोने में पांच-पांच भाले, पांच-पांच कृपाण तथा धनुष्य और बाणों से भरे तूणीर व्यवस्थित रूप में रखे हुए थे । उस खण्ड में आने के पश्चात् सैनिक ने एक लटकती हुई स्वर्ण जंजीर को खींचा और उस खण्ड का मुख्य द्वार खुल गया ।. कुछ ही क्षणों के पश्चात् उस राक्षस सैनिक ने कहा - " आप मेरे पीछे-पीछे आ जायें । " अनेक खण्डों को पार करते हुए वे चल रहे थे । एक खण्ड के द्वार पर दो सशस्त्र सैनिक खड़े थे । उसने सबको वहां रोक लिया । सब वहां एक घटिका पर्यन्त खड़े रहे । एक श्यामवर्ण की राक्षस सुन्दरी पर्दे से बाहर आयी और उन सबको अन्दर आने का संकेत किया । वे एक विशाल और सुन्दर खंड में प्रविष्ट हुए । एक ओर स्वर्ण का पलंग पड़ा था और दूसरी ओर रत्नजटित बड़ा सिंहासन था। बिंबिसार और धनंजय की दृष्टि उस सिंहासन की ओर गई। दोनों चौंक उठे । उन्होंने देखा एक स्वस्थ और मांसल व्यक्ति उस पर रौब से बैठा है । वह प्रसन्न मुद्रा में है । उसके गले में सुपारी जितने बड़े-बड़े मोतियों की माला है और कमर में वज्रमंडित स्वर्ण की करधनी है | अन्यान्य अनेक प्रकार के अलंकारों से सज्जित उन्होंने शंबुक को
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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