SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२ अलबेली आम्रपाली मेरी कोई भी शर्त मान्य करे, यह स्थिति नहीं थी। फिर भी उसने शर्ते मान्य की हैं। जिस मंगल पुष्करणी में स्नान करने का अधिकार किसी भी नारी को नहीं है, वहां मेरा अभिषेक होगा। एक राज्यसत्ता के समान सत्ता प्राप्त होगी । यह सब. इसलिए कि वैशाली के युवक लड़ें नहीं। क्या वैशाली के कल्याण के लिए ऐसा किया गया है ? नहीं नहीं. 'इसका रहस्य कुछ और है। रात घिरती जा रही थी। नोंद नहीं आ रही थी। मध्य रात्रि के बाद वह निद्राधीन हई और निद्रादेवी की गोद में अठखेलियां करने लगी। दूसरे दिन। उषा की स्वर्णिम आभा धरती पर फैले, उससे पूर्व ही आम्रपाली पिता को नमस्कार कर, मां के चित्र को वंदना कर प्रांगण में खड़े रथ के पास आ गई। पिता महानाम पुत्री को विदा करने नीचे आया। उसके प्राण यह जानकर सूख गए कि उसकी प्रिय पुत्री आम्रपाली जनपदकल्याणी बन रही है। पुत्री किसी राजघराने में राजमहिषी होगी, ऐसी आशा उसके मन में थी। जब मनुष्य की आशा पर पानी फिर जाता है तब उसका हृदय टूटकर टुकड़े. टुकड़े हो जाता है। सजल नयन लिये आम्रपाली रथ में बैठी। उसका रथ गतिमान हुआ। साथ-ही-साथ पचीस और रथ वहां से चल पड़े जिनमें आम्रपाली की परिचारिकाएं और अन्य सामग्री थी। वंशाली से पुष्करणी तक का सारा मार्ग लोगों से खचाखच भरा था। मकानों की छत पर हजारों नर-नारी और बच्चे जयनाद कर रहे थे। उस जयनाद के बीच आम्रपाली पुष्करणी के पास जा पहुंची। सिंहनायक और अनेक राजपुरुष वहां थे। सिंहनायक ने पुष्करणी में अभिषेक करने की सारी विधि उसे बता दी। सिंह ने पूछा-"बेटी ! तुझे नमस्कार महामंत्र आता है ?" "हा..।" "तो नमस्कार महामन्त्र का सात बार स्मरण कर तुझे पुष्करणी में अभिषेक करना है।" आम्रपाली ने स्वीकारोक्ति में सिर हिलाया । पूर्ण विधि-विधान के अनुसार आम्रपाली ने पुष्करणी में स्नान किया। बाहर निकलकर उसने स्वच्छ वस्त्र धारण किए और एक विशाल वटवृक्ष के नीचे बने चबूतरे पर एक आसन लगा लिया। वहां वह पूर्वाभिमुख बैठी और अपने इष्टदेव अहंत का स्मरण करने लगी। लगभग एक घड़ी तक स्मरण करने के पश्चात् वह उठी और बाहर आई। आम्रपाली सप्तरंगी वस्त्रों और सुन्दर आभूषणों से सज्जित हो चुकी
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy