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________________ अलबेली आम्रपाली ३१ वैशाली के दो उपनगर थे, क्षत्रिय कुंडग्राम और ब्राह्मण कुंडग्राम । वहां के लोग पूरी तैयारी के साथ उत्सव की प्रतीक्षा कर रहे थे। लिच्छवी नवयुवकों के मन में एक आशा प्रकट हुई थी कि कल से देवी आम्रपाली जनपदकल्याणी के पद पर आएगी। इसका अर्थ है वह सबकी हो जाएगी । उसका नृत्य, संगीत और हास्य सबके लिए सुलभ होगा। उसके सप्तभौम प्रासाद में बिना किसी रुकावट के आया-जाया जा सकेगा। उसके कटाक्षों से आहत होकर जीवन का आनन्द लेने का अवसर मिलेगा। क्षत्रिय कुंडग्राम के अधिपति सिद्धार्थ के बड़े पुत्र नन्दीवर्धन अपने अनेक साथियों के साथ चेटक के राजमहलों में आ पहुंचे थे। उनको इस उत्सव में भाग लेना अनिवार्य था। आम्रपाली होने वाले उत्सव की पूरी तैयारी में लगी हुई थी। सबसे पहले उसने अपने प्रासाद में भारत की बेजोड़ और भव्य वाद्य मण्डली तैयार की थी। पूर्व भारत के प्रख्यात वीणावादक आचार्य पद्यनाभ वहां थे, उनकी अवस्था पैंतालीस वर्ष की थी। आचार्य इन्दुशेखर वीणावादक के रूप में नियुक्त थे। उनकी बांसुरी पूर्व भारत को मंत्र-मुग्ध कर चुकी थी। वे चालीस वर्ष के थे। कलिंग के सुप्रसिद्ध मृदंगवादक, आचार्य इलावर्धन भी देवी आम्रपाली के निमन्त्रण पर वहां आ पहुंचे थे । वे पचास वर्ष के थे। कांस्यवाद्यों में निष्णात आचार्य माघपुत्र और काष्ठवाद्यों के संयोजक आचार्य किरातार्जुन-ये भी वाद्य मण्डली के साथ जुड़ गये थे। इनके अतिरिक्त अनेक सह वाद्यकार भी वहां नियुक्त थे। नृत्य-भूमि के नियोजक आचार्य भद्रमुख के शिष्य आर्य हरिभद्र आ गए थे। चम्पानगरी से भाष्करवरण नाम के रस कवि भी आ पहुंचे। इनके काव्य मनुष्य के प्राणों में रस भरने वाले और यौवन की उन्मत्तता पैदा करने वाले थे। देवी आम्रपाली जानती थी कि उसके जनपदकल्याणी बनने के बाद अनेक युवक रूप और यौवन की प्यास बुझाने के लिए वहां आएंगे। किसी को रोका नहीं जा सकेगा। अनेक व्यक्ति केवल संगीत और नृत्य के शौकीन भी आएंगे। इसलिए आम्रपाली ने वैशाली की सर्वोत्तम नर्तकियों में से सात-आठ नर्तकियों को अपने भवन में रख लिया। वे सारी नर्तकियां सोलह से इक्कीस वर्ष की अवस्था वाली थीं। रात का पहला प्रहर। आम्रपाली शय्या पर लेट गयी। नींद नहीं आ रही थी। उसे गणतन्त्र का दृश्य याद हो आया। सोचा, मुझे जनपदकल्याणी नहीं बनना चाहिए। किसी भी उपाय से इससे छुटकारा मिल जाए तो अच्छा । पर अब क्या हो ? गणतन्त्र
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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