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________________ अलबेली आम्रपाली ३५३ भवन में चलें. मैं अपनी पत्नी का मस्तक आपके चरणों में चढ़ाकर आपका स्वागत करूंगा ।" "ऐसे नहीं ?” "तो फिर कैसे ?" "अभी तुम अपनी पत्नी को यहां लाओ। देखो तुम्हारे हाथ से ही तुम्हारी पत्नी का मस्तक धड़ से अलग होना चाहिए फिर मैं तुम्हारे साथ चलूंगी ।" " दूसरी कोई शर्त ?” ... "यह शर्त अनुकूल नहीं लगी ?" "यह शर्त तो मुझे स्वीकार्य है ही। इससे अधिक भी कोई शर्त हो तो..?” "नहीं, प्रिय सुदास ! इसके सिवाय मेरी कोई दूसरी शर्त नहीं है ।" तत्काल सुदास भवन की ओर गया । माविका और प्रज्ञा- दोनों मूक बनकर यह बात सुन रही थीं। माध्विका बोली - " देवि ! स्त्री हत्या का ऐसा घोर पाप।" " तू नहीं समझती । माघु ! आज मेरे हृदय में ऐसी ज्वाला धधक रही है कि मैं उसे समझ ही नहीं पा रही हूं। जो नारी मेरे रूप को मेरे गौरव को और मेरे यौवन को न्यून करे, मैं उस नारी को सहने में अक्षम हूं।" आम्रपाली बोली ! .. 1 माविका पुनः कुछ कहे, उससे पूर्व ही भगवान् तथागत सुदास के उपवन में आ गए। उनके साथ उनके पांच शिष्य थे । माध्विका की दृष्टि जब उस ओर गई तब वह क्षण भर के लिए स्तब्ध रह गई । वह बोली - "देवि ! इस ओर देखें, भगवान् तथागत आ रहे हैं और उनके साथ हैं प्रिय अभयजित...।" "अभयजित ! " आम्रपाली के चेहरे पर हर्ष का आलोक उतर आया। उसने शांत भाव से इधर आ रहे तथागत की ओर देखा । उसका सिर स्वतः झुक गया । उसके दोनों हाथ बन्द कमल की भांति अंजलिबद्ध हो गए । माविका और प्रज्ञा ने वहीं धरती पर झुककर प्रणाम किया । भगवान् बुद्ध निकट आकर बोले - "धर्म तेरा रक्षण करे, जनपदकल्याणी ! भिक्षु अभय जित मेरे साथ ही है । परन्तु अब वह तुझे कैसे मिल सकता है ?" "क्यों, भगवन् !' "रूप, ऐश्वर्य और अज्ञान तथा गर्व के कारण आज तू जो कर रही है, क्या तू उसे जानती है ?" आम्रपाली प्रश्नभरी दृष्टि से भगवान् बुद्ध की ओर देखने लगी । भगवान् बुद्ध ने मृदु-मधुर स्वर में कहा - " कल्याणि ! तू जिसका मस्तक चाहती है, जानती है वह कौन है ? सोलह वर्ष पूर्व जब वह मात्र तीन महीने की थी, तब तेरे द्वारा त्यागी गई तेरे उदर से उत्पन्न तेरी प्रिय पुत्री है ।"
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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