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________________ ३५२ अलबेली आम्रपाली आम्रपाली बोली - "अपराध की चर्चा करने के लिए मेरे पास समय नहीं है ।" "तो आप भवन में पधारें मैं आपका स्वागत करूं आपकी ।" "सुदास ! मैं तुम्हारे भवन में नहीं आ सकती ।" "देवि ! मैं तो बाहर गया था." 'मुझे कुछ भी खबर नहीं है. मेरी दासी मनोरमा ने..." "किसी दासी ने मेरा अपमान नहीं किया ।" "तो मेरे पर कृपा करें मेरे हृदय में प्रज्वलित आशा के दीपक को इस प्रकार..." बीच में ही आम्रपाली बोली - "तुम चाहते क्या हो ?" "आप मेरे भवन में पधारें सत्कार करने की मेरी उमंग को पूरी करें।” आम्रपाली सोचने लगी। उसके मन में एक विचित्र प्रश्न उभरा और सुदास के किए हुए अपमान के पीछे कितनी वास्तविकता है, यह जानने के आशय से वह बोली - "एक शर्त पर मैं तुम्हारे आतिथ्य को स्वीकार कर सकती हूं।" " आपकी किसी भी शर्त को मैं आज्ञा- कूप मानूंगा । आप चाहेंगी तो पांच लाख के बदले दस लाख स्वर्ण मुद्राएं मैं आपके चरणों में न्यौछावर कर दूंगा ।" सुदास ने अत्यन्त विनम्रता से कहा । "स्वर्ण मुद्राएं ! सुदास ! मेरे भंडार में कोटि-कोटि स्वर्ण मुद्राएं हैं। मुझे स्वर्णमुद्रा की आवश्यकता नहीं है।" "तो फिर ?" "तेरी पत्नी अत्यन्त रूपवती है, क्यों ?" " किन्तु वह आपकी श्रेणी में नहीं आ सकती फिर भी आप उसे देख सकेंगी।" "मैंने उसे देखा है उसको देखकर ही मैं मुड़ी थी ।" "उसने आपका कोई अपमान तो नहीं किया न ?" "इस प्रश्न के साथ मेरी शर्त का कोई सम्बन्ध नहीं है यदि तुम अपने भवन में मेरा सत्कार करना चाहते हो तो तुम्हें एक काम करना होगा...।" "आज्ञा करें देवि !" "तेरी पत्नी का मस्तक मेरे चरणों में झुकाना होगा ।" आम्रपाली ने निश्चयात्मक स्वरों में कहा । सुदास क्षण भर के लिए स्तब्ध रह गया । आम्रपाली ने हंसते हुए कहा - "सुदास ! तुम ऐसा नहीं कर सकोगे । कोई बात नहीं, मैं चलती हूं।" तत्काल सुदास ममता भरे शब्दों में बोला - " आपकी शर्त मंजूर है. आप
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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