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________________ अलबेली आम्रपाली २७ "नहीं, औषधि तो छह माह तक चल सकती है । प्रश्न कोई दूसरा ही था।" "क्या आप मुझसे प्रश्न छुपा रहे हैं"। रानी ने मधुर स्वरों में कहा । जो पुरुष वज्र के आघात से भी आहत नहीं होते, वे पुरुष नारी की एक ही मधुर मुस्कान, एक मधुर प्रश्न और आंख की चंचलता से कांप उठते हैं। त्रैलोक्यसुन्दरी एक आसन पर बैठ गयी। महाराज भी वहीं बैठ गये । महाराज बोले-"प्रिये ! याद है न कि मैंने तुझे एक वचन दिया था ?" "हां, किन्तु इसमें चिन्ता जसा क्या है ?" "देवी ! बाहर की बातें अन्तःपुर में प्रवेश नहीं पातीं ! युवराज की मृत्यु के बारे में लोग क्या कहते हैं, तू नहीं जानती।" रानी चौंकी, वह मौन रही। राजा ने कहा- "लोग कहते हैं कि राज्य की खटपट के कारण ही राजा ने विष देकर युवराज को मारा है।" "स्वामी ! लोग सदा अपनी बुद्धि से पंगु होते हैं"। रानी ने तत्काल कहा। प्रसेनजित ने रानी का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा-"प्रिये ! तेरी बात ठीक है। पर हमें लोकापवाद से दूर रहना चाहिए। यही निरापद है । यही ज्ञानीजन सीख देते हैं।" "यह तो पुरानी बात है।" । "इसीलिए समाधान ढूंढ़ने मुझे जाना पड़ा । अपने प्रिय कुमार को मगधाधिपति बनाने में सभी भाई सहमत हैं। केवल एक भाई सहमत नहीं है।" रानी चौंकी। उसने पूछा-"कौन ?" "बिंबिसार।" "श्रेणिक ! यह तो बहुत ही विनीत, शान्त और सभी झंझटों से दूर रहने वाला है", रानी ने कहा। "हां, सागर शान्त होता है। किन्तु पृथ्वी को जलमग्न करने में उसको समय नहीं लगता।" "हां 'आचार्य ने क्या समाधान दिया?" "आचार्य ने बहुत ही सुन्दर समाधान दिया है। वास्तव में वे मेरे परम हितैषी हैं । सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।" "कैसे ?" "बिंबिसार को किसी भी बहाने देश से निर्वासित कर देना चाहिए" । राजा ने विश्वास भरे स्वर में कहा। रानी अत्यन्त ही हर्षित होकर राजा की गोद में सिर रखकर बोली"महाराज ! बहुत ही उत्तम मार्ग है । लोग भी हम पर कोई दोषारोपण नहीं
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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