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________________ अलबेली आम्रपाली ३१३ वसंतिका और रोहिणी देवी का केश मार्जन करने लगी और अकस्मात् पास वाले कक्ष से वीणा का अति हृदयवेधक स्वर आम्रपाली के कानों से टकराया। वह चौंकी' 'माध्विका की ओर देखकर बोली-“वीणा कोन बजा रहा है ?" "सम्भव है, आचार्य पद्मनाभ आए हों ?" "किन्तु आज तो मैं किसी से मिलने की स्थिति में नहीं हं..." "कदाचित् आचार्य को ध्यान न रहा हो..." "ओह !" कहकर आम्रपाली ने दर्पण में देखा। अचानक उसका हृदय आंदोलित हो उठा। एक परिचारिका परों के किनारे आलक्तक लगा रही थी और दूसरी परिचारिका कंचुकीबन्ध बांध रही थी। आम्रपाली ने चौंककर कहा"माधु..." "क्यों, दवि !" "महाराज की वीणा कौन बजा रहा है ? आचार्य पद्मनाभ ? नहीं, नहीं । आचार्य की अंगुलियों में वीणा के तार पर इस प्रकार नृत्य करने की शक्ति नहीं है।" वीणा पर दो स्वरों की माधुरी खिल उठी। आम्रपाली अचानक उठ खड़ी हुई और बोली-"माधु..." "महाराज आए हैं ?" "यह तो..." "जा देख 'महाबिंब वीणा को कौन बजा रहा है ?" "जी।" कहकर माध्विका आगे बढ़े, इतने में ही आम्रपाली बोल पड़ी"खड़ी रह मेरा कमरपट्टक ला' शीघ्रता से अलंकार पहना। रोहिणी ! केशमार्जन रहने दे.''जैसा है वैसा केश-कलाप लेकर।" इतने में ही महाबिंब वीणा पर तीन ग्राम का स्वर आंदोलन होने लगा। आम्रपाली का हृदय असह्य हो उठा । उसकी जिज्ञासा तीव्र हुई... . उसका मन बोल उठा-नहीं-नहीं. आचार्य पद्मनाभ नहीं 'यह मेरे प्राणप्रिय स्वामी की कला प्रतीत होती है। वह अत्यन्त अधीर हो गयी। आज तक किसी को भूलने का अभिनय करने वाली नारी, आज स्वयं के अभिनय की अकुलाहट अनुभव करने लगी। हृदय अधीर था'"'मन अधीर था। इस अधीरता में ही अलबेली का रूप सौ गुना अधिक खिल उठा 'दर्पण के सामने वह मुग्ध नेत्रों से देखती रही।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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