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________________ २६८ अलबेली आम्रपाली किन्तु आज ... उसके मन पर एक डंक लगा. मैं वर्धमानकुमार को आकृष्ट क्यों न कर सकी ? क्या मेरे रूप-यौवन में कोई कमी है ? नहीं नहीं नहीं । देवी आम्रपाली शय्या में पड़ी । परन्तु यह प्रश्नतीर उसके प्राणों को प्रकंपित कर रहा था । ६१. अभिमान की ज्योति स्वामी को प्रस्थित हुए छह महीने बीत गए । प्रसूतिकाल निकट आ गया । परन्तु राजगृही से कोई संदेश नहीं मिला। धनदत्त सेठ ने दामोदर को राजगृही भेजने का निर्णय किया, किन्तु नंदा ने इस प्रकार किसी को भेजने की मनाही की। उसने पिताजी से कहा- "बापू ! या तो वे कार्य में बहुत व्यस्त होंगे अथवा राज्य कार्य के लिए अन्यत्र गए होंगे. हमें यहां से किसी को भेजने की आवश्यकता नहीं है ।" पिता ने नंदा को समझाने का प्रयत्न किया किन्तु नंदा ने अपना आग्रह नहीं छोड़ा। उसने प्रतीक्षा करने की बात कही । धनदत्त सेठ निरुपाय हो गए । एक और पुत्र की चिन्ता उनके हृदय को व्यथित कर रही थी, वहां दामाद की नयी चिन्ता ओर उभर गई । परन्तु केवल गिनती के दिनों में ही इस चिन्ता पर एक हर्ष की पचरंगी बदली छा गई । नंदा ने सुन्दर, स्वस्थ और तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया । समस्त भवन में आनन्द ही आनन्द छा गया । धनदत्त सेठ ने उज्जयिनी के तीन हजार वणिक घरों में मिठाई भेजी और गरीबों को धन बांटा। और इस परम खुशी में एक नयी खुशी और जुड़ गयी । पुत्र जन्म के तीसरे ही दिन यवद्वीप से ये समाचर आ गए कि सेठ के सुपुत्र और पुत्रवधू सभी सुरक्षित और कुशल हैं और भारत में आने के लिए प्रस्थित हो गए हैं । सभी के मन पर पहला प्रभाव यह पड़ा कि नंदा के पुत्र के चरण टिकते ही ये शुभ समाचार मिले हैं नंदा का पुत्र वास्तव में कोई उच्च कोटि का जीव है । पुत्र का सुन्दर मुख देखकर नंदा अत्यन्त प्रसन्नचित्त हो गई। प्रसूतिकाल की समग्र पीड़ा को वह भूल गई और अन्तर में पलने वाले मातृत्व की मंगलमय प्रेरणा उछलने लगी । नंदा के आरोग्य पर कोई असर नहीं हुआ । जब उत्तम जीव जन्म लेते हैं, तब माता को वे पीड़ा रूप नहीं बनते । नंदा को पुत्र जन्म की बधाई देने अनेक-अनेक लोग आने लगे ।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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