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________________ अलबेली आम्रपाली २६७ आए थे ? " " मात्र परिचय में नहीं। हम दोनों गंधर्व विवाह में बंधे भी थे ।" यह कहकर बिबिसार ने आम्रपाली के साथ रहे सम्बन्धों को विस्तार से बताया । वर्षाकार के चित्त में एक आशा चमक उठी । देवी आम्रपाली को प्राप्त करने के लिए वैशाली को नष्ट करना ही होगा । इधर जब बिंबिसार अपने बाल साथी वर्षाकार के साथ वैशाली और आम्रपाली की बात कर रहा था, तब वैशाली में आम्रपाली की यशोगाथा इतनी फैल गयी थी कि उसके दर्शनार्थं लोग दूर-दूर से आते और आम्रपाली का नृत्यु देखने स्वर्ण को पानी ज्यों बहाते । कुछ ही समय पूर्व सिन्धु- सौवीर से आए हुए चंडप्रद्योत ने देवी आम्रपाली को अपने यहां आने का निमंत्रण दिया था। देवी ने इतना मात्र जवाब दिया, जनपद कल्याणी अपने प्रासाद का त्याग कर आ नहीं सकती । आप स्वयं यहां आ सकते हैं । परन्तु जिस दिन बिंबिसार और वर्षाकार ये वातें कर रहे थे, उसी दिन वैशाली गणतन्त्र के एक महानायक महाराज नंदीवर्धन के लघुभ्राता महाराज सिद्धार्थ के पुत्र वर्धमानकुमार का विवाह था । उसमें भाग लेने जनपदकल्याणी आम्रपाली को क्षत्रिय कुंडग्राम जाना पड़ा । 1 जिसके बदन पर परम शान्ति, अपूर्व स्थिरता, हृदय को भेदने वाली गंभीरता और तेजस्विता स्वाभाविक रूप से विकसित थी, उस तरुण वर्धमानकुमार का आज विवाह था । राजसभा जुड़ी हुई थी । और उसमें आम्रपाली अपने नृत्य से सबको मुग्ध कर रही थी । वह वर्धमान कुमार को देखते ही चौंक पड़ी । उसने आज तक ऐसा रूप और तेज किसी पुरुष में नहीं देखा था । वर्धमानकुमार यदि उसकी ओर एक बार भी दृष्टिपात कर ले तो वह धन्य हो जाए, ऐसा आम्रपाली को लग रहा था । और इसलिए उसने अपनी नृत्य छटा को अनेकविध कलाओं से समृद्ध और सुरभित किया था । किन्तु जो जन्म से ही विशिष्ट ज्ञानी हैं, वे कुमार वर्धमान अपने आप में थे । उन्होंने संसार की सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी की ओर आंख उठाकर भी नहीं देखा । शांत और स्थिर बैठे थे। किसी को वे अप्रसन्न नहीं दीख रहे थे । पश्चिम रात्रि के अन्त में आम्रपाली सप्तभूमि प्रासाद में जाने के लिए प्रस्थित हुई । उसके मन में एक दर्द उभर रहा था जो पुरुष रूप-यौवन और मस्ती को देखते पागल से बन जाते हैं, उस रूप-यौवन पर इस उगते नवजवान ने दृष्टि भी नहीं डाली | ओह ! यह कैसे संभव हो सका ? देवी आम्रपाली बिंबिसार को विस्मृत करने के लिए अपनी कला और रूप की मस्ती में अत्यन्त निमग्न हो गयी थी ।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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