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________________ अलबेली आम्रपाली इस प्रकार पत्नी से अनुमति प्राप्त कर बिंबिसार ने दामोदर को धनंजय के पास भेजा । २० दूसरा दिन भी बीत गया । तीसरे दिन प्रातः काल प्रस्थान करना था । धनदत्त सेठ ने विविध प्रकार की सामग्री तैयार करवाई थी, किन्तु बिंविसार ने पाथेय के रूप में थोड़े पदार्थ ही साथ लेने की इच्छा व्यक्त की । विदाई की वेला में बिंबिसार ने अपनी स्मृति रूप में पत्नी को राजमुद्रिका अर्पित करते हुए कहा -- "प्रिये ! मेरा यह स्मरण सावधानी से रखना । जव पिताजी कुछ स्वस्थ होंगे तब मैं शीघ्र ही लौट आऊंगा नहीं तो ?" बीच में ही नंदा बोली- "आप निश्चिन्त रहें । पत्नी के लिए पिताजी की सेवा में तनिक भी कमी न आने पाए। आपका यह स्मृति चिह्न मैं सावधानी से रखूंगी किन्तु सही स्मृति तो मेरे उदर में पोषित हो रही है ।" ": बिसार ने उत्तर में प्रिया के दोनों हाथ पकड़े और एक मधुर चुम्बन ले वहां से प्रस्थान कर दिया । fafaसार के जाने के पश्चात् नंदा के नयन सजल हो गए। धनदत्त सेठ और उनकी पत्नी बिंबिसार के साथ नगरी की सीमा तक गए और वहां के समाचार भेजते रहने की प्रार्थना की । .. सरल हृदय वाले धनदत्त सेठ और नंदा की माता के चरणों में नमन कर, आशीर्वाद प्राप्त कर सजल नयनों से बिंबिसार ने विदा ली। ffसार को पहुंचाने के लिए दामोदर तथा दुकान के अन्यान्य व्यक्ति भी गांव के बाहर तक आए थे। कल ही बिंबिसार ने दामोदर तथा अन्य अनेक व्यक्तियों को पुरस्कार के रूप में स्वर्ण मुद्राएं दी थीं। छोटे सेठ की उदारता पर सबको गर्व हो रहा था । उनके प्रस्थान पर सबको दुःख होना स्वाभाविक था । जब बिबिसार का रथे दृष्टि से ओझल हो गया तब सभी सजल नयनों से अपने-अपने स्थान पर आ गए। fafaसार और धनंजय एक रथ में बैठे थे । संरक्षक सिपाही तथा दास अपने-अपने अश्वों पर आरूढ़ थे और दूसरे रथ में दासियां तथा अन्यान्य सामान भरा था । बिंबिसार उज्जयिनी नगरी की ओर स्थिर दृष्टि से देख रहा था। क्षणक्षण में उज्जयिनी की दूरी बढ़ती जा रही थी और नंदा। "ओह ! अभी वह कितनी व्यथित होगी ? उसके चित्त को कौन प्रसन्न करेगा और उसके आंसू ं।" ये सारे विचार बिंविसार के हृदय को व्यथित कर रहे थे । और धनंजय ने पूछा - "महाराज ! क्या हम वैशाली होकर चलें ।"
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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