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________________ २८२ अलबेली आम्रपाली और पत्र मेरे नाम से ही लिखना । वह शीघ्र आ जाएगा । उसके पास रहने से मुझे अधिक धर्य रहेगा ।" महामंत्री ने महाराजा का मन जान लिया और वे तत्काल वहां से चल पड़े । दूसरे दिन महामंत्री ने धनंजय को उज्जयिनी की ओर रवाना कर दिया । उसके साथ दो रथ, दस-बारह रक्षक, दास-दासी थे । उज्जयिनी में रहते-रहते बिंबिसार अपने पूर्व जीवन को प्रायः भूल चुका था। नंदा का प्रेम ही जीवन का सर्वस्व है, ऐसा मानकर वह चल रहा था । नंदा बिबिसार को बहुत प्रेम करती और क्षण भर के लिए भी अलग करना नहीं चाहती थी। दो महीनों से वह गर्भवती भी हो गई थी । सगर्भावस्था के प्राथमिक लक्षण स्पष्ट दिखाई देने लगे थे। रोज प्रातः काल उसे एक बार वमन होता. सिर भी भारी रहता । माता-पिता को जब यह ज्ञात हुआ कि नंदा सगर्भा है तो उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई और नगरी के उत्तम वैद्य से विचार-विमर्श भी किया । नंदा का चित्त भी मातृत्व की आशा से पुलकित बन गया बिबिसार भी हर्षित हुआ । मनुष्य का मन चंचल है या स्वार्थी, यह समझना कठिन होता है । उज्जयिनी में आने के बाद fafबिसार के मन में एक आशा उभरी थी कुछ पुरुषार्थ कर आराम से रहने योग्य एक स्थान प्राप्त करना और आम्रपाली को बुलाकर उसके साथ जीवन की माधुरी का रसास्वादन करना । स्थान प्राप्त होने से पूर्व ही विबिसार का मन और हृदय दोनों परवश हो गए। नंदा की मूर्ति ने आशा को खंड-खंड कर डाला और नंदा के साथ विवाह कर लेने पर बिंबिसार को मगध के सिंहासन की भी स्मृति नहीं रही । वृद्ध पिता क्या करते होंगे ? धनंजय लौट कर क्यों नहीं आया ? आदि-आदि प्रश्न भूतकाल की परतों के नीचे दब गए थे । जीवन की पृष्ठभूमि पर अंकित होने वाली पहली प्रीत कभी मिटती नहीं । कभी वह दबती है और कभी वह हृदय को मथकर उभर आती है । बिसार के हृदय पर अंकित होने वाली पहली प्रीत मिटी नहीं थी । मिट भी नहीं सकती । फिर भी आज वह आम्रपाली के साथ बिताए आनन्दमयी दिनों को विस्मृत कर गया था । उसे यह भी याद नहीं रहा कि उस रात्रि में आकाश मेघाच्छन्न था । आम्रपाली और वह दोनों सप्तभूमि प्रासाद की गवाक्ष में बैठे थे । अंधेरी रात थी । बिबिसार वीणा बजा रहा था । आम्रपाली पुलकित नयनों से स्वामी को निहार रही थी । वीणा की तरंगें उल्लास बिखेर रही थीं ।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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