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________________ २७४ अलबेली आम्रपाली नहीं भेजे। मनुष्य के मन में अनेक तरंगें उठती हैं, किन्तु परिस्थितिवश लाचार होकर उसे उन तरंगों का शमन करना पड़ता है। यहां आने के बाद जैसे तुम मुझे एक क्षण के लिए भी नहीं भूल पायी, वैसे ही मैं भी तुम्हें क्षणभर के लिए विस्मृत नहीं कर सका। जीवन में जो बन्धन दृढ़ होता है, वह कभी टूटता नहीं। तुम्हारे सारे समाचार ज्ञात हुए। मन प्रसन्न हुआ। कन्या का नाम भी आकर्षक रखा है 'पद्मसुन्दरी ! ज्योतिषी के कथनानुसार उसका तुम्हें त्याग करना पड़ेगा, यह जानकर मुझे अत्यन्त दुःख हुआ है। मेरी ओर से तुम उसको विशेष प्यार करना। प्रिये ! मैं तुम्हें गौरव से लाने के लिए अनेक प्रयत्न कर रहा हूं। उन प्रयत्नों में अकस्मात् मैं यहां के उदारमना सेठ धनदत्त के सम्पर्क में आया और मुझे उनकी एकाकी कन्या नंदा के साथ, इसी आश्विनी मास में, विवाह करना पड़ा। क्योंकि स्थायी रहने और गौरवपूर्ण स्थिति बनाने के लिए यह आवश्यक था। नंदा स्वभाव से मृदु और विनम्र है । वह तुम्हारी छोटी बहन बनकर साथ में रह सके, इतनी धर्यशालिनी है। इस समाचार से तुम्हें प्रसन्नता होगी। प्रिये ! मैं तुम्हारी मनोवेदना को जानता हूं। तुम मेरी प्राणाधिक प्रियतमा हो, यह बात मैंने अभी तक नंदा से कही नहीं है। पर अब मैं उसे बता दूंगा। प्रिये ! तुम स्वस्थ रहना 'आनन्द में रहना' वियोग की वेदना को उभरने मत देना। पद्मसुन्दरी को मेरा विशेष प्यार' 'मैं यहां के हाथीदांत के प्रसिद्ध कुछ खिलौने भेज रहा हूं। उन्हें तुम बेटी को देना और...। ____क्या लिखू ? तुम्हारे पत्र की पंक्तियों में तुम्हारा ही प्रतिबिम्ब देखता हुआ मैं बिंबिसार।" बिंबिसार ने पत्र को पुनः पढ़ा और उसी स्वर्ण नालिका में डालकर स्वयं खिलौने खरीदने बाजार में गया । खिलौने खरीदकर उन्हें एक करंडक में डाल दामू को कहा-"तू पांथशाला में जा''यह पत्र और करंडक उस संदेशवाहक को दे आ..." "जी" कहकर दामोदर पांथशाला में गया । बिबिसार को यह कल्पना भी नहीं थी कि जिसके लिए इतने सुन्दर खिलौने भेजे हैं, उस कन्या का आम्रपाली ने त्याग कर दिया है। बिंबिसार को धनंजय की स्मृति हो आई । उसने सोचा, धनंजय तो केवल दो महीने तक ही राजगृह में रुकने वाला था। समय बहुत बीत गया । वह अभी तक क्यों नहीं लौटा ? क्या हुआ होगा? यह विचार करते-करते बिंबिसार दुकान की ओर मुड़ा। उसने देखा, सामने से आठ हृष्ट-पुष्ट स्त्रियां एक पालकी को उठाए आ रही हैं। वह पालकी कामसेना की ही थी। पालकी की जालीदार खिड़की से कामसेना ने जयकीति को
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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