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________________ अलबेली आम्रपाली १६ "दूसरी शर्त के विषय में मुझे इतना ही कहना है कि आप जानते हैं कि जनपदकल्याणी का गौरव असामान्य नहीं है। क्योंकि इस पद पर आने वाली कन्या सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी होती है। वैशाली की महान् गणसभा जिस कन्या को वैशाली की अपूर्व शोभा बनाना चाहती है वह गणसभा क्या इतना नहीं सोच सकती कि शोभा और सुगन्ध उचित स्थान पर ही शोभित होते हैं। दूसरी दृष्टि यह है कि वैशाली में पहली बार जनपदकल्याणी की प्रतिष्ठा का प्रश्न आया है। यह बात जब भारत में प्रसृत होगी तब राष्ट्र के अनेक कलाकार, राजा, महाराजा, संगीतज्ञ आदि महान् हस्तियां वैशाली की शोभा को देखने के लिए यहां आएंगी। क्या वे व्यक्ति वैशाली की शोभा को वसंत बाजार में देखना चाहेंगे? ___ "मैं स्पष्ट कहना चाहती हूं कि वैशाली की महानता ये निर्जीव प्रासाद नहीं, जीवित जनपदकल्याणी है। सप्तभौम प्रासाद के निर्माण में अठारह करोड़ सोनेयों का व्यय हुआ है या अठारह अब्ज का। आज उसकी सुन्दर और सुशोभित दीवारों में कोई स्पन्दन नहीं है, कोई हास्य नहीं है, कोई गुलाबीपन नहीं है। वह आज निर्जीव शव की तरह शोभाहीन पड़ा है। मैं इस प्रासाद में गुलाबी और मनमोहक वायु मंडल का निर्माण करना चाहती हूं। इस प्रासाद में आकर लोग अपनी वेदना को भूल जाएं, लोगों को जीवन की मधुर प्रेरणा मिले, शून्य हृदय संगीत से झंकृत हो उठे, यह मेरी भावना है । वैशाली की जनपदकल्याणी को केवल रसवृत्ति पैदा करने वाली पुत्तलिका रखना हो तो फिर जनपदकल्याणी की प्रतिष्ठा करने की जरूरत ही क्या है ? रूप क्रीड़ा की वस्तु नहीं है, पूजा की वस्तु है और जो प्रजा रूप को क्रीड़ा योग्य वस्तु मात्र मानती है, वह रूप की जाज्वल्यमान लो में जलकर भस्मसात् हो जाती है । यदि आप यह मानते हैं कि जनपदकल्याणी वैशाली की, पूर्व भारत की और इस गणतन्त्र की अपूर्व शोभा है, गौरव है तो फिर उसके उपभोग में आने वाली सारी सामग्री श्रेष्ठ और गौरवप्रद क्यों नहीं होनी चाहिए ?" सभासदों ने जयनाद कर जनपदकल्याणी की बात का समर्थन किया । दोनों शर्ते मान्य हो गई। गणनायक सिंह सेनापति ने आम्रपाली से कहा--"अब तीसरी शर्त को भी हम स्वीकार करते हैं । परन्तु कुछ संशोधन के साथ।" समग्र गणसभा ने आम्रपाली का जयनाद किया । सिंह सेनापति ने आम्रपाली की अनुमति लेकर यह घोषणा की-"वैशाख शुक्ला तीज के दिन प्रथम प्रहर में देवी आम्रपाली पवित्र पुष्करणी में अभिषेक करेगी और फिर उसकी शोभायात्रा सप्तभौम प्रासाद में जाएगी। उस दिन
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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