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________________ २६६ अलबेली आम्रपाली हों। मैंने आपसे पहले ही कहा था कि कन्या-रत्न की प्राप्ति होगी। यह पत्र पढ़ते समय आपको इसकी सत्यता प्रत्यक्ष हो गई होगी । कन्या अत्यन्त रूपवती, सुन्दर और गुणवती होगी किन्तु इस कन्या का ग्रहयोग इतना विचित्र है कि नब्बे दिन के पश्चात् एकानवें दिन यदि आप अपनी कन्या को देखेंगी तो अंधी हो जाएंगी। यह एक निश्चित बात है । इसलिए सावचेत रहना। युवराज बिबिसार उज्जयिनी जाएंगे, इसमें कोई संशय नहीं है और आपकी कन्या के जन्म के दस दिन बाद वे एक सुन्दर तरुणी से विवाह करेंगे । उस विवाह के बाद वे सुखी होंगे। इतना ही नहीं, छह महीने बाद अकस्मात् उनका भाग्य बदलेगा । उनका भविष्य अत्यन्त उज्ज्वल है किन्तु आपको अपने स्वामी का वियोग दीर्घकाल तक सहना पड़ेगा। यह बात कभी मिथ्या नहीं हो सकती। मैंने गणित के आधार पर आपके सभी प्रश्नों का उत्तर लिखा है।" पत्र के नीचे ज्योतिषी के हस्ताक्षर और आशीर्वाद भी था। माध्विका ने देखा, पत्र पढ़ते-पढ़ते देवी अत्यन्त चिन्ताग्रस्त हो गई हैं। पत्र को पुन: पेटिका में रखकर आम्रपाली ने कहा- "इसको संभाल कर रख दे।" माध्विका पेटिका लेकर चली गई । जाते-जाते उसने देखा कि आम्रपाली के नयनों के तट पर मोती जैसे आंसू चमक रहे थे। परन्तु दूसरे ही क्षण आम्रपाली ने स्वस्थ होकर अपने पास सो रही बालिका को उठाकर छाती से लगा लिया। उसने मन ही मन सोचा, भले ही मुझे अंधी होना पड़े नष्ट होना पड़े... परन्तु भाग्य से प्राप्त ऐसे सुन्दर रत्न का त्याग कैसे किया जा सकता है ? आम्रपाली ने पुनः कन्या को छाती से चिपका लिया। ५५. विषमुक्ति और पद्मसुन्दरी का त्याग आचार्य गोपालस्वामी ने कादंबिनी को विषमुक्त करने के लिए अनेक प्रयोग किए और वे प्रयोग सफल हो गए। आश्विन शुक्ला पूर्णिमा के दिन कादंबिनी पूर्णरूप से विषमुक्त हो गई थी और आचार्य ने हरिण, शशक, हंस, सारस आदि विविध प्राणियों पर उसके चुंबन, दशन आदि से अपने प्रयोगों की प्रामाणिकता भी जान ली थी। विषमुक्ति के प्रयोगों से कादंबिनी अत्यन्त निर्बल और क्षीण हो गई थी। उसको देखकर लगता था कि वह असमय ही वृद्धत्व का भोग बन गई है। परन्तु कुछ भी क्यों न हो, कादंबिनी अपने संकल्प में दृढ़ थी। वह चाहती थी कि वह विषमुक्त हो और उसका अभिशप्त जीवन किसी का प्राणलेवा न रहे। यह
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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