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________________ अलबेली आम्रपाली २६५ बिंबिसार ने मुसकराते हुए कहा-"आपकी बात सही है । फूल को कुम्हलाने न देना ही माली की करामात है।" नंदा वहीं की वहीं खड़ी रह गई। उसकी दृष्टि स्वर्ण-थाल में पड़ी पुष्पमालाओं पर पड़ी। उसने एक माला उठाकर प्रियतम के गले में डाल दी। बिबिसार ने भी एक माला नंदा के गले में पहना दी । इधर बिंबिसार मधुयामिनी मना रहा था और उधर वैशाली के सप्तभूमि प्रासाद में देवी आम्रपाली प्रसूति शय्या में विश्राम कर रही थी। उसके पास ग्यारह दिन की कमल जैसी कोमल कन्या सो रही थी। आम्रपाली ने आश्विन कृष्ण प्रतिपदा को कन्या को जन्म दिया था। प्रसव सुखपूर्वक हो गया था। परन्तु आम्रपाली का चित्त अत्यन्त खिन्न और व्यथित था, क्योंकि तीन महीनों के इस दीर्घ अन्तराल में स्वामी का कोई संदेश प्राप्त नहीं हुआ था । अपने पत्र का उत्तर भी नहीं मिला था। इसलिए उसके मन में तीव्र अकुलाहट हो रही थी। अनेक विचार आ रहे थे। वे कहां होंगे? उनका स्वास्थ्य तो नहीं बिगड़ गया होगा ? आदि-आदि । आम्रपाली को यह कल्पना थी ही नहीं कि बिबिसार उसको भूल जाएंगे और अन्य किसी नारी के बंधन में बंध जाएंगे। आम्रपाली ने अपनी परिचारिका माध्विका को कहा था कि कन्या-जन्म के समाचार स्वामी को आज ही भेज देना है। माध्विका ने एक संदेशवाहक को तैयार कर दिया । देवी आम्रपाली ने शय्या में बैठे-बैठे ही एक पत्र लिखा और संदेशवाहक को शीघ्र उज्जयिनी जाने के लिए कह दिया। संदेशवाहक पत्र लेकर वहां से चल पड़ा। आम्रपाली को यह याद था कि प्रसव के बाद वह पत्र अवश्य पढ़ लेना है जो ज्योतिषी ने लिखकर दिया था। परन्तु माध्विका ने कहा कि प्रसूतिकाल के बीस दिन पूरे होने के पश्चात् ही वह पत्र पढ़ना है, ऐसा ज्योतिषी का मत था। काल अपनी गति से चलता रहता है । बीस दिन पूरे हो गये । देवी आम्रपाली ने माध्विका से वह पत्र मंगाया। माध्विका ज्योतिषी का सीलबंद पत्र ले आई। अत्यन्त आतुरता से आम्रपाली ने सील तोड़ी और उसमें रखे ताड़पत्र को निकाल कर पढ़ना प्रारंभ किया। ज्यों-ज्यों वह पत्र पढ़ती गई, त्यों-त्यों उसका उषा जैसा चेहरा गंभीर और चिन्ताग्रस्त बनता गया। दूसरी बार पुन: उसने पत्र पढ़ा। वैशाली के प्रसिद्ध ज्योतिपी ने लिखा था-"महादेवी आम्रपाली दीर्घायु
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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