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________________ अलबेली आम्रपाली २५१ पहचान नहीं है । मेरा भाग्य फूट गया। उस माल को लेकर आया । भारी नुकसान उठाया और पूर्व की स्थिति लड़खड़ा गयी ।" बिम्बिसार ने पूछा - " राख के बोरे ?” "हां, मैंने उन्हें सावचेती से सम्भालकर रखा है । धनदत्त मकान के पास पहुंचा और पुकारा - "नंदा ! एक अतिथि आए हैं. शीघ्रता करना ।" “जी ।" एक मीठा स्वर सुनाई दिया । बिबिसार ने पूछा - "सेठजी ! आपके पुत्र के आने के कोई..." "कोई समाचार नहीं है उसकी पत्नी भी साथ गयी है. इस विशाल भवन में मैं, मेरी पत्नी और पुत्री नंदा के सिवाय और कोई नहीं है । मकान की शोभा तो मनुष्यों से होती है ।" हाथ-पैर धोकर दोनों भोजन करने बैठ गए। धनदत्त ने पुकारा- "बेटा.." "आई पिताजी !" कहती हुई नंदा भोजन का थाल लेकर तत्काल आ गयी । नंदा को देखकर बिंबिसार चौंका । अरे, यह तो वही तरुणी है । आकस्मिक योग कैसा बना ! जिसको देखने के लिए मन तरस रहा था, स्वयं वह तपस्या कर रहा था । उसी के भवन में नंदा भी अतिथि को देखकर चौंकी। आज प्रातः ही इस सुन्दर युवक को पल भर के लिए देखा था । कल भी यही व्यक्ति मन्दिर के बहार खड़ा था । ..... ५२. तेजंतुरी नंदा को देखते ही बिसार के प्राणों में हर्ष उमड़ आया । पिता के बाजोट पर भोजन का दूसरा थाल रखने नन्दा पुनः आयी । बिबिसार ने देखा कि नंदा भी उसको तिरछी दृष्टि से देख रही है । ओह ! इस दृष्टि में कितना तेज है । धनदत्त बोला - " जयकीर्ति ! अब आप ।" "हां, सेठजी ! परन्तु मेरे पर आप एक कृपा करें।" "कहें ।” "मैं आपके पुत्र के समान हूं अवस्था में बहुत छोटा हूं इसलिए आप मुझे 'आप' कहकर न पुकारें .. ..." "अच्छा'''अच्छा भाई ! अच्छा । तुम्हें देखकर मेरे मन में एक तादात्म्य उभर रहा है । तुम यहां कहां ठहरे हो ?" बिंबिसार ने पांथशाला का नाम बताया । " जयकीर्ति ! पांथशाला में रहना उचित नहीं है । भोजन की क्या व्यवस्था है?”
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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