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________________ २३२ अलबेली आम्रपाली रखते हैं। कल महाराज यहां से चले जाएंगे और फिर लौटकर नहीं आएंगे, यह सुनकर उसका मन प्रहत हो गया, वह कुछ भी नहीं कह सकी। वह धरती की ओर दृष्टि गड़ाकर खड़ी की खड़ी रही। "अच्छा तो तू मेरी चादर ओढ़कर चली जा'।" कादंबिनी ने कहा। "नहीं महाराज ! मुझे बरसात का कोई भय नहीं है ।" "तो तू इस प्रकार अन्यमनस्क क्यों खड़ी है ?" "महाराज ! क्या आपके दर्शन पुन: नहीं होंगे?" इस प्रकार से कादंबिनी ने श्यामा का मन पढ़ डाला। उसके मनोभावों को वह पहचान गयी। वह गम्भीर स्वरों में बोली- "पगली ! मेरा कार्य सफल हो जाने पर मैं तेरे से मिलने आऊंगा। तेरे लिए एक सुन्दर माला लाऊंगा' और तू यह मत समझना कि मैं तेरे मनोभावों को नहीं जान सका हूं.''तू कल प्रातः जरूर आना । मैं तुझे एक रहस्य बताऊंगा।" संशय भरे मन के साथ श्यामा चली गयी। कादंबिनी भोजन करने बैठी । आज उसे भूख भी तीव्र लगी थी। आज की भोजन सामग्री भी रोज की अपेक्षा उत्तम थी। भोजन करते-करते भी वह श्यामा के उद्वेलित हृदय की भावनाओं को याद कर रही थी। इसलिए उसने श्यामा को प्रातःकाल बुलाया था। वह विचारों के आवर्त में फंसकर शय्या पर सो गई। वर्षा गहरी हो रही थी। ठंडी हवा वातायन से कुटीर में आ रही थी। कादंबिनी अपने नूतन जीवन के आशामय चित्रों की कल्पना करती-करती निद्राधीन हो गयी। ___ आशा के सुकोमल फूलों की शय्या में जब व्यक्ति सो जाता है तब उसकी नींद भी रसमय बन जाती है । सूर्योदय से पूर्व ही श्यामा स्नान आदि के लिए गरम और ठंडे पानी की व्यवस्था कर गई थी। कुटीर का द्वार भीतर से बन्द था । उसने द्वार को खटखटाया। ___ कादंबिनी सुनहले स्वप्निल संसार से जागी। उसने द्वार खोला । सामने ही श्यामा खड़ी थी । श्यामा के वदन को देखकर कादंबिनी समझ गई थी कि इसने रात भर नींद नहीं ली है । इसने पूरी रात मनोमंथन में बितायी है। . श्यामा बोली-"स्नान के लिए जल ले आयी हूं।" "तेरी चपलता मुझे सदा याद रहेगी। आज मैं तुझे एक बात बताने वाला हं-"तेरे पर मुझे विश्वास है, श्यामा ! तू किसी को यह बात मत बताना। क्यों, किसी को नहीं कहेगी न?" "ठीक है, महाराज !"
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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