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________________ अलबेली आम्रपाली २३१ क्या ? अब उसको कोई भय नहीं था । नूतन जीवन की आशा को कोई भी मेघ नहीं ढांक सकता, नहीं रोक सकता। संगीतकार ने राहुल और श्यामा को वस्त्र दे दिए। यह देखकर उनकी माता बहुत प्रसन्न हुई और मन-ही-मन इस उदार अथिति के कल्याण की भावना करने लगी। आज उसने उमंग भरे मन से रसोई बनाई। किन्तु भोजन का थाल ढक कर जब श्यामा अतिथिगृह के कुटीर में आई तब वर्षा मे रौद्र रूप धारण कर लिया था. अपने घर से यहां पहुंचते-पहुंचते श्यामा के सारे वस्त्र भीग गए। यौवन में चरणन्यास करने वाली श्यामा के सशक्त शरीर की ओर दृष्टि कर कादंबिनी बोली- 'श्यामा ! तू तो भीग गई है। इतनी जल्दी क्या थी?" "महाराज ! भोजन के थाल में वर्षा की एक बूद भी नहीं गिरने दी।" "अरे पगली ! भोजन का थाल भीग जाता तो मुझे इतनी चिन्ता नहीं होती । अब तू जल्दी ही घर जा और वस्त्र बदल ले । भीग कर यहां पुनः मत आना?" "महाराज ! मुझे बरसात बहुत प्रिय लगती है । भीगने में मुझे बहुत आनंद आता है. आपको और कोई वस्तु की जरूरत।" ___ "नहीं श्यामा । मुझे किसी वस्तु की जरूरत नहीं है । ये बर्तन में एक ओर रख दूंगा। प्रात:काल ले जाना और देख, राहुल को बता देना कि मुझे कल प्रातः यहां से आश्रम के लिए प्रस्थान करना है।" "बरसात नहीं रुकेगी तो?" "तो भी जाना ही है ? कल से मैं वहीं आश्रम में रहूंगा। जिस कार्य से मैं इतनी दूरी से आया हूं, उसको मुझे प्रारम्भ करना है।" कादंबिनी ने स्वाभाविक स्वरों में कहा। __ ये शब्द सुनते ही ही श्यामा के हृदय पर गहरी चोट लगी । वह अवाक् बनकर पुरुषवेशधारिणी की ओर देखती रही। उसने मन-ही-मन सोचा, क्या महाराज की कोई प्रियतमा आश्रम में रहती है ? ओह, वह भारी स्वरों में बोली-"फिर आप यहां नहीं आएंगे?" __ "नहीं श्यामा, अपना कार्य पूरा होते ही मैं यहां से चला जाऊंगा' पर अब तू जा' 'तेरे सारे वस्त्र भीगे हुए हैं 'मैं भोजन कर लूंगा। मेरी चिन्ता मत करना।" श्यामा यौवन में प्रवेश कर चुकी थी । इस अल्पकालीन संसर्ग से उसके मन में इस तरुण के प्रति अव्यक्त आकर्षण पैदा हो गया था। वह स्वयं एक गरीब आरामिक की कन्या थी। अपने मन की बात वह प्रकट नहीं कर सकती थी। परिस्थिति, संकोच और लज्जा ये स्त्री के मनोभावों को मन में ही दबाकर
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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