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________________ अलबेली आम्रपाली २२१ ईर्ष्या आदमी को भटका देती है। तुम बिंबिसार को ही दोषी मानने लगे । इसलिए तुम सब खोज में भटक गए। विपरीत मार्ग में चलते रहे । विषकन्या आबाद रह गई और वह निर्भयतापूर्वक अपना काम करती रही। यदि आचार्य गोपालस्वामी विषकन्या की बात नहीं करते, तो हमारे अन्य अनेक स्तम्भ ढह जाते ।" सुनंद नीची दृष्टि किए जमीन कुरेदने लगा । सिंह सेनापति ने कहा - " सुनंद ! आज ही तू आम्रपाली के पास जा, उससे क्षमा मांग ले । मात्र तेरी मूर्खता के कारण ही आम्रपाली को बहुत सहना पड़ा है । प्रियतम का वियोग नारी में अकथ्य वेदना पैदा करता है । अब तो बिंबिसार भी उज्जयिनी पहुंच गए होंगे। तू आज ही देवी से मिलकर यह स्पष्ट रूप से कह कि बिंबिसार निर्दोष हैं ।" "जी !” कहकर सुनंद खड़ा हुआ । बिबिसार और धनंजय उज्जयिनी से बीस कोस की दूरी पर स्थिति एक छोटी नगरी में पहुंच गए थे । fafaसार का प्रवास अत्यन्त सुखद और निर्बाध रहा । मार्गगत बाधाओं की जो आशंका थी, वे बाधाएं आयी ही नहीं । बिबिसार उज्जयिनी पहुंचने के बाद आम्रपाली को संदेश भेजने का विचार कर रहे थे । उन्हें तो यह पता ही नहीं था कि जिस आशंका के कारण उन्हें वैशाली छोड़नी पड़ी है, उस शंका का निवारण हो चुका है । ४६. वैशाली को छोड़ने के पश्चात् विरहिणी नारी के समक्ष जब प्रियतम प्राणों में आशा का एक फूल खिलता है 'आगमन का संदेश आता है तब उसके मिलन- माधुरी का स्वप्न उभरता है । पृथ्वी को बिजली की चमक-दमक प्रियतम मेघ से मिलने की आशा आकाश में मेघ उमड़ आए। विरहिणी द्वारा यह संदेश मिल गया । पृथ्वी के मन में नृत्य करने लगी । वर्षा का प्रारम्भ हो गया । समग्र पूर्व भारत में वर्षा होने लगी । गगन प्रसन्न था । मेघ आनन्दित था । पृथ्वी भी अत्यन्त प्रसन्न थी । परन्तु विरहवेदना में सब सुखों को भूल जाने वाली आम्रपाली को अभी तक अपने प्रियतम का संदेश प्राप्त नहीं हुआ था। युवराज के संदेशों की वह आतुरतापूर्वक प्रतीक्षा कर रही थी । कल ही तो चरनायक सुनंद आम्रपाली से क्षमा मांगने गया था और उसने कहा था – “युवराज बिबिसार सर्वथा निर्दोष हैं. वे सप्तभूमि प्रासाद में ससम्मान रह सकते हैं । "
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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