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________________ २१६ अलबेली आम्रपाली ४५. शंका का निवारण जैसे-जैसे चंपा नगरी निकट होती गई, कादंबिनी के मन की उमस बढ़ती गई। चंपा नगरी बहुत भव्य है। किसी भी पांथशाला में ठहरा जा सकता है। किन्तु परिचित व्यक्ति अधिक है। यदि किसी ने पहचान लिया तो क्या होगा? यदि पुरुषवेश का रहस्य प्रकट हो जाए तो..? और स्नान तथा भोजन में यह अभिशाप कैसे सुरक्षित रखा जाए? इस प्रकार अनेक विचारों के संझावात में फंसी हुई कादंबिनी चंपा नगरी के परिसर में आ पहुंची । उसका हृदय हिलोरें लेने लगा। अभी तो कुछ समय पूर्व ही माता के भवन का त्याग किया था और यदि अधिक काल भी बीता हो तो भी क्या? जहां बाल्यकाल बीता हो वह स्थान आकर्षित करता ही है। ससुराल के सुखों के मध्य रहने वाली नारी वृद्ध हो जाने पर भी अपने पीहर के संस्मरणों को नहीं भुला सकती। कादंबिनी के हृदय में चंपा के मधुर संस्मरण, अपनी प्रिय सखियों के साथ की गई क्रीडाएं, चंपा का बाजार आदि उभरने लगे । उसने कुछ समय के लिए अपने अश्व को रोका । अब कहां जाए, यह प्रश्न उसके मन को मथने लगा। कठिनाई स्वयं मार्ग का निर्माण करती है । कादंबिनी को भी एक मार्ग मिल गया। नगर के बाहर छोटे-बड़े अनेक उपवन हैं। वहां के व्यवस्थापक पथिकों के ठहरने की व्यवस्था भी करते हैं । यही उचित होगा कि मैं भी किसी उपवन में जाकर ही ठहरूं । आरामिक से मिलकर व्यवस्था करूं। यह सोचकर उसने अपने अश्व को एक मार्ग पर मोड़ा। लगभग एकाध घटिका के पश्चात् वह एक आरामिक की झोंपड़ी के पास आ पहुंची। आरामिक की पत्नी घर में थी। उसने इस विदेशी दीखने वाले युवक का सत्कार किया और बोली-'महाराज ! क्या आज्ञा है ?" ___"मैं उज्जयिनी से आ रहा हूं। मुझे यहां के महान् वैद्य गोपालस्वामी से मिलना है। किन्तु यहां पहुंचने के पश्चात् मुझे ज्ञात हुआ कि वे बाहर गए हुए हैं । इसलिए वे लौटकर यहां आएं तब तक मुझे यहीं कहीं ठहरना है। यदि मेरे रहने के लिए आप यहां एक अलग कुटीर दे देंगे तो जो किराया होगा, वह देकर मैं यहां रह जाऊंगा।" "आपका शुभ नाम?" "संगीतकार निर्मलदेव ।' कादंबिनी ने अश्व पर बैठे-बैठे ही कहा। _ "सामने दो खंड वाला एक कुटीर है.'' उसका प्रतिदिन का किराया है बीस पदक''इसके अतिरिक्त यदि आप स्नान-भोजन की व्यवस्था भी चाहेंगे तो उसका अतिरिक्त व्यय देना होगा।"
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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