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________________ अलबेली आम्रपाली १९५ ४१. मृत्यु का रहस्य मध्याह्न बीत चुका था। कल प्रियतम को विदाई देते समय आम्रपाली कुछ उत्साह में थी। किन्तु आज वह पूर्ण रूप से टूट चुकी थी। कल वह भोजन भी नहीं कर सकी। आज भी भोजन की रुचि नहीं थी। प्रिय व्यक्ति का वियोग हृदय पर आघातकारक होता ही है। प्रियतम को बचाने के प्रयत्न में कल वह अत्यन्त उत्साहित थी किन्तु बिबिसार के जाने के बाद तथा माध्विका के यह समाचार सुनाने के बाद कि महाराज सही-सलामत रूप से यहां से प्रस्थित हो चुके हैं, आम्रपाली का दिल वेदना से भर गया। आज प्रातः जब उसकी संरक्षिका ने सगर्भावस्था में इस प्रकार चिन्तातुर रहना या लंघन करना हितकारक नहीं होता, यह समझाया तब उसने कुछ दूध लिया और एक आम खाया। पर उसके अन्तर् में उत्पन्न विषाद दूर नहीं हो सका। सिंह सेनापति आम्रपाली से मिलने आए। आम्रपाली ने कृत्रिम प्रसन्नता से उनके साथ बातचीत की। उसने कहा-'भवन पर जब लिच्छवियों का आक्रमण हुआ तब माविका ने एक रक्षक के साथ बिंबिसार को समाचार भेजे और तत्काल मेरे स्वामी अपने अनुचर को साथ ले यहां से निकल गए।" सिंह सेनापतिको यह समाचार उचित लगा। फिर भी उन्होंने पूछा- "पुत्रि! मैंने सुना था कि आज दिन के प्रथम प्रहर में माध्विका यक्ष मंदिर में गई थी।" "हां, सच है । मेरे स्वामी योगक्षेम पूर्वक यहां से निकल गए, इस उपलक्ष में पक्ष को भोग चढ़ाने गई थी।" ___ इस बात में गणनायक को संदेह नहीं हुआ। वे बोले---"पुत्रि! बहुत ही अच्छा हुआ । मगध के युवराज को कोई आंच आ जाती तो संघर्ष अवश्यंभावी बन जाता।" इसके प्रत्युत्तर में आम्रपाली के मन में अनेक विचार उठ रहे थे । फिर भी वह मन पर नियंत्रण कर इतना मात्र बोली-“महाराज ! लिच्छवी युवकों के इस दुष्ट बर्ताव से मेरे मन पर भारी आघात लगा है। मेरे स्वामी दो दिन बाद यहां से जाने वाले ही थे। मैंने आपको वचन भी दिया था। फिर भी यह भयंकर आक्रमण कैसे हुआ ? क्या जनपदकल्याणी के गौरव की यही मर्यादा है ?" सिंह सेनापति ने आम्रपाली के सम्मुख इस अप्रिय घटना के प्रति अपना खेद प्रकट किया और कहा-"इस आक्रमण के पीछे किसका हाथ था, इसकी खोज करायी जाएगी।"
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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