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________________ १९४ अलबेली आम्रपाली लगभग अर्धघटिका पर्यन्त विचारों में डूबती-इतराती कादंबिनी अन्त में रो पड़ी और उसके मन में एक विचार उभरा-इस प्रकार जीने से तो आत्महत्या कर मर जाना ही अच्छा है। परन्तु आत्महत्या करने से क्या सिद्ध होगा? इससे काया के अणु-अणु में व्याप्त विष क्या धुल जाएगा? नहीं, कभी नहीं। इस प्रकार विचार करते-करते उसने तेल-मर्दन किया। प्रत्येक अंग-प्रत्यंग उसका टूटन अनुभव कर रहा था। परन्तु कोई उपाय नहीं था। लगभग दो घटिका के पश्चात् वह स्नानादि कार्य से निवृत्त होकर अपने खंड में गई। 'एक दासी दूध का पात्र रख गई । दूसरी दासी मुखवास रख गई। इतने में ही वृद्ध प्रबंधक वहां आया और भीतर आने की आज्ञा मांगी। कादंबिनी ने आंख के इशारे से भीतर आने की आज्ञा दी। वृद्ध प्रबंधक भीतर आकर बोला-"देवि ! एक समाचार मिला है । हमें बहुत सावधान रहना है।" कादंबिनी ने प्रश्न भरी दृष्टि से प्रबंधक की ओर देखा। वद्ध प्रबंधक ने कहा-'चंपा नगरी के विषवैद्य गोपालस्वामी कल यहां आ "पहुंचे हैं।" "किसने बताया ?" "हमारे चरपुरुषों ने।" "वे कहां ठहरे हैं ?" "अभी तो वे गणतंत्र के अतिथिगृह में ठहरे हैं। 'संभव है नगरी के बाहर ही कहीं ठहरेंगे।" "कोई बात नहीं है।" कादंबिनी ने आश्वस्तभाव से कहा। "आपके नैशभ्रमण का परिणाम ?" "जो परिणाम आना था, वह आ गया।" कादंबिनी ने कहा और दूध का पात्र हाथ में लिया। वृद्ध प्रबंधक ने जाने की आज्ञा मांगी। कादंबिनी बोली-"चिन्ता की कोई बात नहीं है. कुछ भी न हुआ हो, यही भाव आपको बनाए रखना है।" वृद्ध प्रबंधक चला गया। दुग्धपान करते-करते कादंबिनी के मन में एक विचार उभरा कि विषवैद्य गोपालस्वामी से मिलना है और इस अभिशाप से मुक्त हुआ जा सकता है या नहीं, यह जानना है।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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