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________________ अलबेली आम्रपाली १८५ हैं। किन्तु आपको यह खयाल अवश्य रखना चाहिए था कि यह भवन जनपदकल्याणी का है। उसके गौरव पर इस प्रकार प्रहार करना शोभास्पद नहीं है।" "तू बहुत सयानी मत बन । हम वैशाली के शत्रु के लिए यहां आए हैं, देवी का अपमान करने के लिए नहीं । देवी के गौरव की रक्षा करने तथा देवी को शत्रु के पंजे से छुड़ाने के लिए यहां आए हैं।" चचों आगे बढ़े, इससे पूर्व ही भवन के प्रांगण में 'हा', 'हू', 'ह' की आवाजें प्रचंड हो गयीं। गणनायक सिंह सेनापति को आक्रमण के समाचार मिल गए थे। वे तत्काल वहां आ पहुंचे। उन्होंने सिंह गर्जना करते हुए आक्रमणकारी युवकों से कहा"मैं आप लोगों को एक घटिका का समय देता हूं। इसके भीतर-भीतर आप सब बाहर निकल जाएं नहीं तो मुझे आपके रक्त से इस धरती को कलंकित करना पड़ेगा।" लिच्छवी युवकों ने सिंह सेनापति का जयकार किया। सिंह सेनापति के आदेश का उल्लंघन करने की किसी में हिम्मत नहीं थी। सभी लिच्छवी युवक सेनापति के रथ के चारों ओर एकत्रित होने लगे । गणनायक के सैनिक चारों ओर घूम रहे थे। __इधर आम्रपाली दोनों को साथ ले भूगर्भ-गृह में धीरे-धीरे चल रही थी। अंधकार था, पर अंधकार में चलने की अभ्यस्त हो चुकी थीं आंखें । चलते-चलते आम्रपाली ने कहा- "स्वामिन् ! यह भूगर्भ-मार्ग लगभग एक कोश जितना लम्बा है । नगरी के बाहर पश्चिम द्वार के सामने एक उपवन है... वह उपवन भी सप्तभूमि प्रासाद का ही है "उपवन में एक यक्ष मन्दिर है। यह मार्ग यक्ष मन्दिर के भीतर के गर्भस्थान में निकलेगा'.." धनंजय ने पूछा-'देवि ! वह उपवन सूना है क्या?" "हां, मात्र वहां चार-पांच परिवार रहते हैं। इसी उपवन से फूल मेरे यहां आते हैं।" फिर आम्रपाली ने बिबिसार से कहा-"पश्चिम के द्वार पर मेरा मेवक दो घोड़ों को लेकर आएगा । आप दोनों अश्व उससे ले लें.. ओह ! एक आवश्यक कार्य तो रह ही गया..." "कौन-सा कार्य प्रिये !" "आपके अलंकारों की पेटिका''आपका पाथेय 'मार्ग में व्यय-योग्य धनराशि..।" "प्राणप्रिये ! इनकी कोई आवश्यकता नहीं है । पेटिका को तुम मेरी स्मृति रूप में रख लेना । उसमें मेरे पिताश्री द्वारा प्रदत्त एक रत्नहार है। उसको तुम सावधानी से रखना । पाथेय तो हम जहां कहीं से भी ले लेंगे।" "नहीं, आप यक्ष मन्दिर में रुकें। माध्विका सब साधन लेकर आ जाएगी।"
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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