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________________ १५४ अलबेली आम्रपाली पहुंचकर आम्रपाली बोली - "स्वामिन्! अब आप निर्भय रहें यही गुप्तमार्ग है । मशाल या दीपक नहीं है, इसलिए अंधकार में ही हमें चलना होगा ।" "प्रिये ! इतना सब करने से तो आमने-सामने मुझे लड़ने दे ।” "महाराज ! अभी तो आपको मेरी प्रार्थना माननी ही होगी ।" "तेरी जैसी इच्छा ।" बिंबिसार ने कहा । और आम्रपाली ने उस सघन अंधकार के बीच भी दीवार में लगी गुप्त - कल की खोज कर ली और कुछ ही क्षणों में वह दीवार एक ओर खिसक गयी । आम्रपाली बोली--" प्राणेश ! मेरे कंधे पर हाथ रखकर चलें। हमें सौ सोपान नीचे उतरना होगा ।" बिबिसार ने प्रियतमा कंधे पर हाथ रखा और धनंजय ने बिबिसार के कंधे पर हाथ रखा । आम्रपाली गुप्त मार्ग अंधकार सघन था में प्रविष्ट हुई। फिर भी आशा का दीप नयनों में तेज भर रहा था । ३६. आशा का दीप (२) सप्तभूमि प्रासाद से निकलने वाला भूगर्भ मार्ग स्वच्छ और सुन्दर था, पर वह अंधकार से व्याप्त था। क्योंकि उतावली के कारण मशाल या दीपक की व्यवस्था वहां नहीं हो सकी थी । बिबिसार ने प्रवास के अन्य साधन भी साथ नहीं लिये थे । बिंबिसार और धनंजय जिन कपड़ों में थे, उसी वेश में वे निकल पड़े थे । 1 महाबि वीणा भी भवन में ही रह गयी थी । रत्नाभरण की पेटिका भी शयनकक्ष में पड़ी थी । केवल धनुष-बाण दोनों के पास थे । इसके अतिरिक्त उनके पास कुछ भी नहीं था । माविका ने राघव को दो अश्व पश्चिम द्वार पर ले जाने की सूचना दे दी थी । लिच्छवी युवक भिन्न-भिन्न टोलियों में सप्तभूमि प्रासाद में घुस गए थे और वे बिंबिसार की खोज में लगे थे । चार-छः युवक माविका को पहचानते थे । उन्होंने माध्विका को घेरकर पूछा - " वैशाली का शत्रु बिंबिसार कहां है ?" माविका बोली - "युवराज बिबिसार और देवी आम्रपाली नगरी की दक्षिण दिशा में भ्रमण के लिए गए हैं ।" "ओह, वे कब लौटेंगे ?" "मैं कैसे बता सकती हूं। दोनों जल-विहार करेंगे, आखेट करेंगे, सम्भव है दिन के अन्तिम प्रहर में लौट आएंगे ।" एक युवक ने पूछा - "वे भवन में नहीं हैं, यह तू सच कह रही है न ?" "मैं क्यों असत्य बोलू । फिर भी आप भवन में शांतिपूर्वक खोज कर सकते
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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