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________________ अलबेली आम्रपाली १६६ षड्यंत्रकारी का पता न चले तब तक संदेहास्पद व्यक्ति बिंबिसार के विषय में कुछ न कुछ सोचना ही पड़ेगा। और जनता के रोष को शांत करना होगा। सिंह सेनापति आम्रपाली से मिलने पुनः सप्तभूमि प्रासाद में गए। उन्होंने बिबिसार और आम्रपाली से अनेक प्रकार से विचार-विमर्श किया । बात ही बात में बिंबिसार बोले- "पूज्यश्री ! आप मुझे अपने भवन में नजरबंद कर रखें। फिर आप सही दोषी की खोज करें।" ___ "निर्दोष को कारागार का बंदी नहीं बनाया जा सकता निर्दोष को किसी भी प्रकार की यातना नहीं दी जा सकती। यदि ऐसा होता है तो न्याय देवता का हृदय फट जाएगा।" आम्रपाली ने कहा । ___ गणनायक ने कहा-"पाली ! तुम जो बात कहती हो वह सच है परन्तु इससे भी बड़ी हानि यह हो सकती है कि मगध के युवराज को नजरबंद किया गया है, उन्हें कारावास में रखा गया है । यह बात छिपी नहीं रह सकती। जब यह बात राजगृह में जाएगी तो अकारण ही युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार हो जाएगी। इसलिए मैंने जो उपाय बताया है कि युवराज को अभी यहां नहीं रहना चाहिए, यह उत्तम मार्ग है।" ___ गणनायक ने और भी अनेक प्रकार से आम्रपाली को समझाया और दूसरे दिन पर बात छोड़कर चले गए। दूसरे दिन । आम्रपाली और बिबिसार-दोनों ने उसी चर्चा को विविध पहलुओं से चर्चित किया और अंत में एक निर्णय पर पहुंचे। ___आम्रपाली ने माविका के साथ एक संदेश गणनायक के पास भेजा। उसमें लिखा था--'वंशाली के कल्याण का संरक्षण मेरा प्रथम कर्तव्य है। इसी को क्रियान्वित करने के लिए मैं आप द्वारा निर्दिष्ट मध्यम मार्ग का अवलंबन लेकर अपने प्राणप्रिय प्रियतम को कुछ दिनों के लिए वैशाली से बाहर भेज रही हूं। किन्तु वे अत्यंत निर्दोष हैं। यह बात आपको मूल दोषी को पकड़ कर सिद्ध करनी होगी।' जब यह संदेश सिंह सेनापति को मिला तब वे अत्यंत आनंदित हुए। उन्होंने प्रत्युत्तर में एक पत्र लिखा-'पाली ! सचमुच तुमने उदारता और बुद्धिमत्ता का परिचय दिया है । मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि अब मैं निश्चिन्तता से सही अपराधी की खोज कर लंगा। मेरा अंतर्मन उन्हें कभी दोषी मानने के लिए तैयार नहीं है । तुम एकाध सप्ताह में ही उन्हें अन्यत्र विदा कर देना। उनका प्रस्थान अत्यन्त गुप्त रहे, यह ध्यान रखना है । आज गणसभा में विशिष्ट सदस्य एकत्रित होंगे, उस समय मैं अन्य कोई भी चर्चा न करते हुए गणतंत्र के गौरव के लिए
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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