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________________ १६४ अलबेली आम्रपाली इधर आम्रपाली इस प्रकार मानसिक उलझन का अनुभव कर रही थी और उधर कादंबिनी के भवन में भी एक बात चर्चित हो रही थी । भवन का वृद्ध प्रबन्धक, जो मगध के महामन्त्री का अपना व्यक्ति था, वह कादंबिनी के साथ खास खंड में बैठा था और उससे एक बात की चर्चा कर रहा था । वृद्ध प्रबन्धक यह नहीं जानता था कि कादंबिनी स्वयं एक विष कन्या है... वह मात्र इतना ही जानता था कि देवी ऐसे विष का प्रयोग करने में निपुण हैं, जिस विष की पहचान कोई नहीं कर सकता और इसीलिए महामन्त्री ने इसको यहां नियोजित किया है। उसने कादंबिनी से कहा - " देवि ! वैशाली की विचित्र परिस्थिति बन गई है। अब हमें कुछ दिन मौन ही रहना होगा ।" " आपकी बात सही है । मैंने अभी एक बात सुनी है कि अंगदेश के प्रख्यात विषशास्त्री आचार्य गोपालस्वामी को यहां बुलवाया गया है।" "हां, मैंने भी यह बात सुनी है। वे यहां रहें तब तक हमें सावधान रहना होगा. उनके यहां रहते किसी की मृत्यु होगी तो परीक्षण करने पर सम्भव है, विष की पहचान हो जाए ।" "ठीक है "वैद्य विष की पहचान कर सकता है, पर वह विषदाता की पहचान नहीं कर सकता। हमें इस प्रकार घबराने की आवश्यकता नहीं है । महामन्त्री की सूचना के अनुसार कोई शिकार मिल जाए तो हमें छोड़ना नहीं है, क्योंकि हमें शीघ्र ही अपना कार्य पूरा कर वैशाली से प्रस्थान कर देना है ।" कादंबिनी ने मुसकराकर कहा - "चाचा ! वैशाली का चर-विभाग कितना ही चतुर क्यों न हो, वह कुछ भी पता नहीं लगा पाएगा। शिकारी सदा नयेउपायों से शिकार करना जानता है। उसे नया मार्ग स्वतः मिल जाता है । आप देखते रहें. कल एक भव्य शिकार स्वतः चलकर यहां आएगा । वह वैशाली के युवकों का नेता है, गणतन्त्र के एक राजकुल का कुमार है और गणसभा का वर्चस्वी सदस्य है ।" "वह कौन है ?" "वह है कुमार शीलभद्र !" कादंबिनी ने हंसते-हंसते कहा । वृद्ध प्रबंधक आश्चर्य की दृष्टि से कादंबिनी की ओर देखने लगा । काबिनी बोली - "इस प्रकार यदि शिकार सहज प्राप्त होता हो तो उसका स्वागत करना ही चाहिए, क्योंकि विपत्ति आने से पूर्व ही कार्य संपन्न कर चलते बनना ही श्रेयस्कर होता है । आचार्य गोपालस्वाली आएंगे तो मैं स्वयं उनसे मिलने जाऊंगी।" " आप ?"
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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