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________________ अलबेली आम्रपाली १६३ भी गुप्तचरी का एक गुर है। रहस्यमय मृत्यु का कारण कुछ भी हो किन्तु गणतन्त्र की जनपदकल्याणी एक शत्रुराज्य के युवराज की अंकशायिनी बने, यह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। हमारे गौरव के लिए यह प्रसंग अत्यन्त लांछन रूप है।" ___ अष्टकुल के एक विशिष्ट महाराज नंदीवर्धन ने शीलभद्र के कथन का समर्थन करते हुए कहा-"यह प्रश्न ऐसा है कि जनपदकल्याणी को यहां बुलाकर समझाना चाहिए जिससे राई पर्वत न बने अथवा किसी प्रकार का संघर्ष न हो। सिंह सेनापति बोला-"देवी आम्रपाली सगर्भा हैं । उनको भी यह परिचय अभी कुछ ही दिन पूर्व मिला है। मैं उनसे मिलकर इस विषय का निचोड़ निकालूंगा । परन्तु रहस्यमय मृत्यु के पीछे कोई षड्यन्त्र हो और उसमें श्रेणिक बिंबिसार का हाथ हो तो...।" बीच में ही महाबलाधिकृत बोले-"तो वैशाली की धरती पर स्थित सप्तभूमि प्रासाद की दीवारें बिंबिसार के रक्त से रंग जाएंगी और बिंबिसार का मस्तक सप्तभूमि प्रासाद की एक शोभा वस्तु होगा।" सभा विसर्जित कर गणनायक सिंह सेनापति ने आम्रपाली को एक संदेश भेजा कि रात्रि के प्रथम प्रहर के पश्चात् वे एक महत्त्वपूर्ण विचार करने के लिए सप्तभूमि प्रासाद में आएंगे। किन्तु इस सन्देश के मिलने के पूर्व ही आचार्य जयकीर्ति छद्मवेशी शत्रु हैं। यह बात सम्पूर्ण नगरी में फैल गयी, क्योंकि जो बात चार कानों से आगे बढ़ जाती है, वह शीघ्र ही सर्वत्र प्रसारित हो जाती है। किसी भी वस्तु के प्रति घृणा पैदा करना सहज सरल होता है, पर ममता, मानवता और संवेदना प्रकट करना बहुत कठिन होता है। आम्रपाली को गणनायक का संदेश प्राप्त हो गया । उसने अपने प्रियतम बिंबिसार से कहा-"प्रिय ! नगर में यही चर्चा हो रही है कि आप छद्मवेशी शत्र हैं । अभी-अभी धनंजय नगर-भ्रमण कर आया है। यदि आप अपना परिचय नहीं देते तो 'मेरी इस स्थिति में आपका वियोग होगा तो।" बीच में ही बिंबिसार ने आम्रपाली के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा"प्रिये ! चिन्ता की कोई बात नहीं है। हमारा मिलन किसी से खंडित नहीं होगा।" ____ आम्रपाली मौन रही और प्रियतम के वक्षस्थल पर मस्तक टिका कर खड़ी हो गयी। बिबिसार सोचता रहा कि नारी केवल रूप और सौन्दर्य से ही महान नहीं होती, वह श्रद्धा और समर्पण से महान् होती है ।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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