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________________ १३८ अलबेली आम्रपाली तो वह कार्य बिगड़ जाता है । इतना ही नहीं, उस कार्य को करने वाला स्वयं संकट में फंस जाता है । तुझे सजगता से कार्य करना है । तेरा शरीर विषयुक्त है, इसे भूल जाना है। मैंने जिन-जिन व्यक्तियों के लिए कहा है ! बेटी, उन्हीं का तुझे निर्दयतापूर्वक सत्कार करना है। करुणा जीवन का मंगल धन है, किन्तु राजनीति के साथ इसका कोई मेल नहीं है । मृत्यु को देखकर रोना, घबराना, अवाक् हो जाना-ये तो सबके लिए होते हैं. किन्तु मौत को देखकर हंसना मौत की अन्तिम छटपटाहट पर हंसना''यह असामान्य शक्ति का स्वरूप है। तुझे ऐसी शक्ति बनानी होगी।" कादंबिनी बोली-"पूज्यश्री ! आपकी आज्ञा के अनुसार ही मैं कार्य करूंगी। मैंने सुना है कि वहां का चर विभाग अत्यन्त पटु है, जागरूक है।" ___"हां, एक दिन ऐसा ही था, पर आज नहीं है। रूप और यौवन की आराधना करने वाले कर्तव्यच्युत हो जाते हैं । वहां यही स्थिति है । तू निश्चिन्तता से अपना काम करती रहना।" कादंबिनी राजगृह से वैशाली आ गई। और चौथे दिन कादंबिनी के नृत्योत्सव की घोषणा की गयो। कादंबिनी जिस भवन में रहती थी, उस भवन में नृत्यमंच के निर्माण की कोई व्यवस्था नहीं थी। वहां से कुछ ही दूरी पर नृत्यशाला थी। उसको किराए पर लिया गया। वह सर्वोत्कृष्ट न होने पर भी धूम्रावरण, स्थिर-अस्थिर प्रकाश व्यवस्था, भव्य प्रेक्षागृह आदि से सज्जित थी। उसका स्वामी एक श्रेष्ठी था। उसने देवी कादंबिनी की रूप-माधुरी को प्राप्त करने को प्रच्छन्न अभिलाषा से यह प्रेक्षागृह दिया था। रात्रि का पहला प्रहर पूरा होते-होते प्रेक्षकों की अपार भीड़ होने लगी और देखते-देखते सारा प्रेक्षागृह प्रेक्षकों से खचाखच भर गया। कादंबिनी आज 'धीवरा उल्लंग' नृत्य प्रस्तुत करने वाली थी। वह मानती थी कि रूप और यौवन की आराधना करने वाली जनता की नयनतृषा उल्लंग नृत्य से ही बुझाई जा सकेगी। धीवरा नृत्य ! मच्छीमार परिवार की मदमस्ती से भरी-पूरी नवयौवना के भयंकर मदोन्मत्तता को दर्शाने वाला नृत्य । कादंबिनी भी सज्जित हो गई थी। उसने केवल मयूरपिच्छी से बना कमरपट्टक धारण किया और श्याम कौशेय का कंचुकीबंध बांध रखा था। उसके साथ तीन अन्य नर्तकियां भी इसी वेश में तैयार थीं। एक नर्तकी ने धीवर का वेश धारण कर रखा था। उसने सिर पर लाल रस्सी की छोटी पगड़ी, छाती और पीठ को ढकने के लिए पीले रंग का कोशेय वस्त्र और श्वेत छोटी धोती पहन रखी थी। सभी के अलंकार कौड़ियों, सीपियों और शंखों के थे। मात्र कादंबिनी ने
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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