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________________ अलबेली आम्रपाली सिंह सेनापति का यह भय अस्थानीय नहीं था । उसने सभी गणों के साथ चर्चा कर एक निर्णय किया था कि आम्रपाली जब सोलहवें वर्ष में प्रवेश करे तब उसका पिता महानाम गणसभा के समक्ष इस तथ्य का उद्घाटन करे और सर्वानुमत से ऐसा निर्णय भी ले लिया गया कि वैशाली की कोई मी कन्या, जो अत्यन्त रूपवती हो, वह किसी एक की न बने। वह समग्र वैशाली जनपद की कल्याणी के गौरव से मण्डित हो । गणसभा का यह निर्णय महानाम के प्राणों का विलोडन कर रहा था, क्योंकि आम्रपाली उसकी एकमात्र सन्तान थी । महानाम जब युवावस्था में था, तब उसकी पत्नी का देहावसान हो चुका था, किन्तु महानाम का यौवन पद्मा नाम की एक सुन्दर नर्तकी के चरणों में न्योछावर हो गया था । अतः उसने दूसरा विवाह नहीं किया और अपनी सारी सम्पदा के साथ वह पद्मा के निवासस्थान पर ही रहने लगा था । ५ पद्मा भी महानाम को हृदय से चाहती थी। उसके पास अपार सम्पदा थी । वह अपनी नृत्य कला को अबाधित रखते हुए महानाम के साथ विवाह के बंधन में बंध गई। विवाह के कई वर्ष बीत गए। पर उसकी सन्तान की भूख नहीं मिटी | महानाम की उम्र अड़तालीस की हो गई थी। पद्मा भी अड़तीस वर्ष की हो चुकी थी। दोनों के मन को संतान की अप्राप्ति की निराशा कचोट रही थी । पद्मा का भवन अति विशाल और रमणीय था । भवन में शताधिक दासदासी रहते थे । भवन के भांडागार में स्वर्ण और रत्नों के ढेर लगे थे । पद्मा के पास रथ, अश्व आदि प्रचुर सुख-सामग्री थी । किन्तु एक सन्तान नहीं थी । विवाहित जीवन को जीने वाली पद्मा संतान के बिना सूख रही थी । उसने संतान प्राप्ति के लिए अनेक मंत्र-तंत्र और औषधोपचार किए पर सब व्यर्थ ही हुए । संतान की प्राप्ति का आधार होता है भाग्य | मंत्र-तंत्र या औषध भाग्य को बदल नहीं सकते, पर शारीरिक दोषों का शमन कर सकते हैं । दोनों पद्मा और महानाम - एक दूसरे के प्रति वफादार, प्रेमार्द्र और सुखी थे । किन्तु बच्चे की किलकारियों के बिना वह भवन कांटों की चुभन पैदा कर रहा था । यह परिस्थिति चौदह वर्ष पूर्व की थी । और एक दिन सेनानायक महानाम प्रातः भ्रमण के लिए घर से निकला । वह एक वाटिका में गया। वहां एक सुन्दर आम्रकुंज था । महानाम घूमते-घूमते उस आम्रकुंज के निकट पहुंचा ।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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